नीयत , Intention , Motive
सुनते हैं , "जैसी नीयत वैसी बरक्कत "!! अर्थात नीयत यदि साफ़ है तो तरक्की, सफलता और ख़राब है तो बर्बादी , बदनामी। बात सन 1995 की है। मेरा एक मित्र था जो ज्यादा पढ़ा -लिखा नहीं था। इसलिए जवान होने के बाद जब अपने पैरों पर खड़े होने की नौबत आयी तो कोई भी छोटा -मोटा काम, जैसे की किसी दवाई की दुकान पर सेल्समेन या रेडीमेड दुकान पर सेल्समेन या कभी चैन सप्लाई कंपनी में काम करने लगा। कहने का मतलब यह है की एक नियमित काम कभी नहीं करता था। समय के साथ उसकी शादी भी हो गई , परन्तु कोई नियमित आय न होने के कारण उसके पिता ने उसे एक किराने की दुकान खुलवा दी।
एक बार में उसके घर गया और पूछा "काम कैसा चल रहा है?" तो वो बोला, "की कुछ ख़ास नहीं , अभी किराने के दुकान डाली है पर पूरा सामान नहीं है। आधे से ज्यादा ग्राहक वापस चले जाते हैं यदि तुम कुछ आर्थिक मदद करदो तो सामान बढ़ा लूँगा और काम चल निकलेगा ". मैंने उसे 10000 रुपए दे दिए और पूछा कब वापस करोगे। तो उसने तीन महीने में वापस करने को कहा। खैर....... मैं रकम देकर चला गया।
एक महीने बाद मैंने उससे पूछा , "काम कैसे चल रहा है ?" बोला ठीक -ठीक है बस दाल -रोटी चल रही है। इस तरह तीन महीने बीत गए तब मैंने उससे रकम वापस करने के लिए फोन लगाया। जबाब मिला की अभी तो नहीं हैं , पत्नी के बच्चा होने वाला है अतः उसके इलाज़ में खर्चा हो रहा है फिर भी मैं आधी रकम यानी 5000 रुपए अगले महीने भेज दूँगा। अब चूँकि पुराना दोस्त था ज्यादा कहना-सुनना ठीक नहीं समझा। और मैं अगले महीने का इंतज़ार करने लगा। अगले महीने उसने 5000 रुपए मेरे बैंक खाते में जमा कर दिए। फिर तीन महीने बाद मैंने फोन पर बाकी की रकम मांगी तो जवाब मिला की "यार कहाँ से दूँ , दुकान कोई खास नहीं चल रही थी , उधारी में काफी सामान दे दिया था और पैसे ही वसूली नहीं हो पाई। इसलिए दुकान बंद कर दी है। अभी एक रेडीमेड दुकान पर सेल्समेन का काम कर रहा हूँ। इधर पत्नी ने भी एक बच्चे को जन्म दिया है , तुम समझ सकते हो की घर खर्च अब डबल हो गया है और आमंदनी घट गई है। फिर भी अगले महीने तुम्हारे पैसे वापस करने की कोशिश करूँगा।
नीयत , Intention , Motive
इस तरह एक महीने से दो , दो से तीन , तीन से चार महीने और फिर दो साल गुजर गए परन्तु बाकी के रुपए वापस नहीं मिले। मैंने भी कहना छोड़ दिया ये सोचकर की "जब नीयत में ही खोट हो तो मजबूरियों का बहाना बनाना बहुत आसान है। "
फिर चार साल बाद उससे मिलना हुआ तब उससे बाकी के पैसे की बात कही तो बोला , "अरे यार अब कौन से रुपए बाकी रह गए सब दे तो दिए !" मैंने पुछा कब ? बोला एक साल पहले ही तो दिए थे तुम्हें याद नहीं देख लो अपने बैंक खाते में , डेट तो मुझे याद नहीं है। मैंने सोचा हो सकता है इसने जमा कर दिए हों और मुझे ध्यान न हो। घर आकर बैंक की पास -बुक संभाली पिछले दो वर्ष की सारी जमाएं देखी परन्तु 5000 रुपए की जमा कहीं दिखी। तब ख़याल आया की लोग क्यों कहते हैं की "भलाई का ज़माना नहीं है "! जब धोखे मिलते हैं तो अच्छाई करने पर भरोसा उठ जाना स्वाभाविक है।
"नेकी कर और दरिया में डाल"। "कर्मों का हिसाब इसी जन्म में चुकाना है"। "जैसे कर्म करेगा वैसे फल देगा भगवान्"। क्या ये सभी कहावतें सही है ? शायद "हाँ " और "ना " भी। "हाँ " इसलिए की नेक दिल इंसान की इंसानियत की ही चारों और चर्चाएँ होती हैं , मान -सम्मान मिलता है। और "ना " इसलिए की धोखा मिलने पर आर्थिक और मानसिक दुःख नेकी करने वाले को भी झेलना पड़ता है !!!!!!!!!
बिना लिखा -पढ़ी के सौदा करने का मतलब है अपने हाथ कटवा लेना। किसी के मुकर जाने पर उसका कुछ नहीं बिगाड़ा जा सकता क्यों की "सबूत" नहीं है। प्रश्न ये भी उठता है की सबूत होने पर भी "बदनीयत " इंसान का क्या बिगाड़ा जा सकता है ? क्या अदालतें और पुलिस को पीड़ित से कोई हमदर्दी होती है , "नहीं " सभी अपनी रोटी सेकने में लगे रहते हैं। तो क्या किसी की सहायता नहीं करनी चाहिए ? बिलकुल करनी चाहिए, मगर सोच समझकर। ये सोच कर की इस सहायता से मुझे कुछ हानि भी होगी तो सहन कर लूँगा/लूंगी । अर्थात अपनी आर्थिक स्थिति को देखते हुए। अन्यथा मीठा उत्तर "काश मैं तुम्हारी मदद कर पाता /पाती " कह कर हाथ जोड़ लेना ही उचित है।
परन्तु ऐसे एहसान -फरामोश लोग हमेशा ही तंगी में रहते हैं। आज भी मेरे उस मित्र की माली हालत अच्छी नहीं है। अभी भी वो एक जगह काम नहीं करता। हाथ -पैर बहुत मारता है पर आर्थिक रूप से समृद्ध नहीं है। क्या पता मेरे जैसे अन्य मित्रों को भी चुना लगा चुका हो।
इंसान एक सामाजिक प्राणी है। एक -दुसरे की मदद के बिना ज़िंदा नहीं रह सकता। पैसा , ज़मीन और पराई स्त्री के साथ सम्बन्ध यदि "खोटी -नीयत" के साथ स्थापित किये गए हैं तो बर्बादी निश्चित है। मानव मनोविज्ञान कुछ इस तरह का है की अच्छाई और बुराई लम्बे समय तक मस्तिष्क में अंकित रहती है। जिसे संबंधों की परवाह होती है वो अपने व्यवहार में शुद्ध नीयत रखते हैं। याद रखने वाली बात यह है की "किसी का विश्वास खो देना , अपने आप को अकेला कर देने वाला और कठिन समय में बेहद कष्ट देने वाला होता है। " पैसे की अपनी अहमियत है लेकिन किसी को धोखा देकर पैसे हड़प लेना और बेशर्म बन जाना अपने आप को आगे मिलने वाली मदद के लिए रोक देना होता है।
बैंकों में भी किसी व्यक्ति को ऋण देते समय उसका CIBIL रिकॉर्ड देखा जाता है। ऋणी का ऋण चुकाने का पिछ्ला इतिहास क्या है ये CIBIL रिपोर्ट से ज्ञात हो जाता है। यदि रिकॉर्ड अच्छा है तो तुरंत दूसरा ऋण मिल जाता है , अन्यथा इंकार कर दिया जाता है। अपनी छवि बनाना इंसान के हाथ में ही है।
इसी तरह से यदि कोई व्यक्ति अपने किसी मित्र से उसकी बहन , पत्नी पर बदनीयती से दोस्ती करता है या कोई स्त्री किसी अन्य स्त्री से उसके पति या भाई पर बदनीयती से सम्बन्ध बनाती है तो हक़ीक़त ज़ाहिर होने पर कुछ घंटों में ही सम्बन्ध टूट जाते हैं। हक़ीक़त मालूम होने पर शर्मिंदगी का सामना करना पड़ता है और सामाजिक संबंधों में गांठें लग जाती है। ऑफिस में महिला सहकर्मी से व्यवहार यदि बदनीयत से हैं तो बेइज्जती का सामना करना पड़ सकता है चाहे वो बॉस ही क्यों न हो।
नीयत -सोशल बेहेवियर |
"नीयत रखो साफ़ , व्यक्तित्व का होगा विकास "!!!!!!!
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बहुतबढ़िया लेख
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