Unchi Dukan Phika Pakwan: ऊँची दुकान -फीके पकवान - ज़िन्दगी के अनुभव पर Blog : Blog on Life experience

बुधवार, 31 जुलाई 2019

Unchi Dukan Phika Pakwan: ऊँची दुकान -फीके पकवान

        Unchi Dukan Phika Pakwan: ऊँची दुकान -फीके पकवान


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ऊँची दुकान 
 [ unche log]    ऊँचे लोग कौन हैं ? वो जिनके पास धन -दौलत  है, या वो जिनके पास संस्कारों की दौलत है ?  क्या  धन आ जाने से सभी के पास  संस्कार, नम्रता आ सकते हैं? शायद नहीं। अचानक से मिल जाने वाली सफलता / दौलत इंसान को उछालती है, अहंकार से भर देती है। ऐसे लोग  अपने आप को औरों से बेहतर समझते हैं और मौके ब मौक़े दूसरे  की हँसी उड़ाने का कोई मौका नहीं छोड़ते। उनके बोलने , चलने , चेहरे की अभिव्यक्ति से उनके चरित्र का पता लग जाता है। ऐसे लोगों की मानसिकता से उनकी सोसायटी व व्यवसाय का अंदाज़ा भी लगाया जा सकता है।  

Unchi Dukan Phika Pakwan: ऊँची दुकान -फीके पकवान

                                                     ऐसा अनुभव मेरे  दोस्त अजय के साथ हुआ जब वो नौकरी ज्वाइन के  लिए जोधपुर गया ।  अन्जान  जगह थी, अतः पिता ने कोई जान -पहचान का जुगाड़ लगाया ताकि बेटे को जोधपुर में रुकने व खाने -पीने में  कोई तकलीफ न हो। पता लगा कि अजय के पिताजी के पुराने परिचित   "राघव जी" जोधपुर में रहते हैं।  उनसे बात कर अजय के अमुक दिन जोधपुर पहुँचने की सूचना उनको दे दी गई। अजय के पिता ने मिठाई का डिब्बा पैक करवा के दिया और उसे रवाना  कर दिया।

                                             जब अजय जोधपुर पहुंचा, तो उसने फ़ोन लगा कर राघव जी से  उनके घर का पता पूछा, तो जवाव मिला कि, "ऑटो पकड़ो, वो तुम्हें यहाँ तक पहुंचा देगा"। अजय उनके घर पहुंचा तो उसे अहसास हुआ कि वह  काफी पैसे वाले हैं , अच्छा -खासा मकान है उनका , गाडी वगेरा सब है। ख़ैर ,उसका स्वागत कर उसे आराम करने को कहा। और पूछा , "पहुँचने में कोई तकलीफ तो नहीं हुयी "| [अजय ने मन में सोचा , अगर इतनी ही चिंता थी तो भेज देते किसी को ] पर अजय ने मुस्कुराकर न में सिर हिलाया।

अजय को उसी दिन नौकरी ज्वाइन करनी थी ।  तो उसने  पूछा कि  "वहाँ कैसे पहुंचा जा सकता है"। तो जबाब मिला  कि  मैन -रोड से ऑटो पकड़ कर वहां पहुँच सकते हो [हांलाकि घर में जीप , बाईक खड़े थे ]। कब जाना चाहते हो ? अजय ने कहा, "अभी निकलना ठीक रहेगा , क्यों कि स्थान दूर है"। लेकिन भाई खाना खाकर जाओ, बन जाएगा घंटे भर में। लेकिन अजय को निकलने की जल्दी थी ।  राघवजी ने पूछा ,वापस कब तक आओगे ? जी  6 या 7  बजे तक। और यह कह कर अजय निकल गया।

 मैन रोड पर आकर उसने ऑटो किया, और ऑफिस पहुँच कर  नौकरी ज्वाइन की। दिन भर नए माहौल में रहा , ऑफिस के लोगों  के साथ खाना खाया, जानकारी देने और लेने में दिन गुजर गया।  अजय ने ऑफिस के साथियों से ही किराये के मकान की बात भी की।  फ्री होकर वो वापिस राघवजी के घर आ गया। रात को उनके घर रुका और बातों ही बातों में उसने कहा कि, "अंकलजी एक किराये के मकान की व्यवस्था  हो सकती है क्या "| राघवजी ने कहा, "क्या करोगे मकान लेके , यहाँ कमरे बहुत हैं किसी एक में पड़े रहना "[जैसे वो कोई सामान हो ]| अजय बोला, नहीं -नहीं ऐसे थोड़े चलेगा , एक -दो दिन रुकना तो ठीक है। मगर मेरी वजह से आप लोग बंध जायेंगे। राघवजी बोले , "चलो देखेंगे , अभी तो आराम करो "| रात को अजय उनके यहाँ रुका तो सही, पर ख़ुशी कोई नहीं हो रही थी , कोई अपनेपन का अहसास नहीं हो रहा था।  

सुबह जब अजय ऑफिस जाने को तैयार हो रहा था तो श्रीमती राघव ने चाय -नाश्ता जरूर करवाया था।  परन्तु जैसे ही वो निकलने को हुआ , राघवजी बोले , "अरे यार अजय, तुम जो मिठाई लाये हो, वो यहाँ तो कोई खायेगा नहीं, क्योंकि हमें तो डायबिटीज़ है , इसलिए ये मिठाई तुम ऑफिस ले जाओ, वहां तुम्हारे साथी खा लेंगे या फिर किसी को देदेना "| बात तो बहुत चुभी अजय को , उसने मन में सोचा , "या तो मिठाई इनके काबिल नहीं या ये मिठाई के काबिल नहीं | अरे भाई , अगर तुम्हे नहीं खानी है तो तुम ही किसी को देदो , किसी की भेंट का अपमान तो न करो'। खैर, अजय मिठाई लेकर ऑफिस चला गया। 

ऑफिस में अपने साथियों से पुनः किराये के मकान के लिए बात की ,एक साथी ने तुरंत ही एक खाली मकान के बारे में बताया और शाम को ही वो उसे देखने चले गए और बात पक्की कर दी। बाद में जब अजय राघवजी के घर पहुंचा, तो देखा की उनके दामाद व बेटी आये हुए हैं। शायद वो जोधपुर में ही रहते हैं। अजय का  परिचय करवाया गया कि वो नीमच से आया है , फिलहाल हमारे यहाँ रुके हुए है , एक -दो दिन  बाद ही किराये के मकान में चले जाएंगे। 

उनकी बेटी केक लेकर आयी थी , अजय को  भी ऑफर किया गया।  अजय को देख कर आश्चर्य हुआ कि राघवजी व उनकी पत्नि मजे से वो केक खा रहे थे , शायद केक खाने से शुगर नहीं बढ़ती!! 

बहुत बात -चीत चल रही थी।  राघवजी अपने दामाद से पूछ रहे थे , "वो एक्सपोर्ट का आर्डर पूरा हो गया क्या , पैसे की दिक्कत मत करना और कहीं कोई काम अटक रहा हो तो मुझे बताना , मेरी पुलिस व सरकारी दफ्तरों में अच्छी पहचान है"। और बेटी से पूछ रहे थे कि सिंगापूर जाने का क्या रहा, लास्ट ईयर तो तुम लोग जापान होकर आये थे| ऐसा लग रहा था कि वो अजय के  सामने  शेखी बघार रहे थे। [अजय मन ही मन हँस भी रहा था और सोच रहा था की पहली बार सोने की अंगूठी पहनने वाले अक्सर वो ही ऊँगली दिखाते  हैं। ]

खैर , जब खाना -पीना हो गया और राघवजी के दामाद -बेटी वापस चले गए, तब अजय ने उनको बताया कि उसने किराये का मकान फाइनल कर दिया है और कल ही उसमे शिफ्ट हो जायेगा। राघवजी बोले , OK.

अगले दिन अजय उनसे विदा लेकर ऑफिस के लिए रवाना हो गया।  
चलते हुए वो सोच रहा था, "पैसा आ जाने से तमीज़ भी आ जाए , ये जरुरी नहीं"।  

दिखावा ज़िन्दगी का हिस्सा बन चुका  है।   
ऐसे बहुत से किस्से हैं जहाँ दिखाया कुछ जाता है और होता कुछ और है।  अब मोदी सरकार को ही देख लीजिये !! कहा था अच्छे दिन आने वाले हैं !! क्या वास्तव में अच्छे दिन आ गए हैं ? पेट्रोल -डीजल के भाव आसमान छू रहे हैं। गैस -सब्सिडी समाप्त हो चुकी है। बेरोजगारी चरम पर है। नोट-बंदी के बाबजूद काला-धन वापस नहीं आया।  GST ने अनेकों लोगों को बेरोजगार कर दिया। सरकार में पारदर्शिता न के बराबर है।  
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