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मंगलवार, 29 नवंबर 2022

बेटियाँ : Daughters

बेटियाँ : Daughters

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बेटियाँ 

भारतीय समाज में  "बेटियां " सोसाइटी के तीन स्तर के परिवारों से सम्बन्ध रखती हैं।  अर्थात उच्च , मध्यम , निर्धन परिवार। जैसा परिवार वैसा ही विचार। उच्च -परिवार [High-Class]  की बेटी आधुनिक विचारों वाली, पढ़ी -लिखी और आत्मविश्वास से भरपूर है।

मध्यम -परिवार [Middle-Class]  की बेटी भी पढ़ी-लिखी है , परन्तु अपने निर्णय लेने में स्वतंत्र नहीं है।

निर्धन-परिवार [Lower-Class] की बेटी अभावों से ग्रस्त है , कम पढ़ी-लिखी है , समाज के कायदे -कानूनों से बँधी  हुई है।  यकीनन, उसे तो किसी भी तरह से अपना निर्णय लेने की आज़ादी नहीं है।

लेकिन बेटिओं में एक विशेष बात होती  है की वे अपने परिवार के बारे में हमेशा सोचती हैं।  हर समय अपने माँ-बाप को सहयोग करने को तत्पर रहती हैं, चाहे वे कुंवारी हों या शादीशुदा । उनका लालन -पालन किस स्थिति में होता है , कहाँ -कहाँ उन्हें परेशानी झेलनी पड़ती है।  क्या हैं समाज के कायदे -कानून , क्यूँ हैं उन पर  इतने सारे प्रतिबन्ध और क्या वे उन प्रतिबंधों का  विरोध कर सफलता अर्जित करती हैं। भारतीय -समाज में बेटियों का चित्रण करने का एक प्रयास। 

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 किसान मनोहर खेती-बाड़ी व् मजदूरी करके अपने परिवार का भरण -पोषण करता था।  पत्नी से  उसके पांच बच्चे थे। उसमें 3 लड़के और 2 लड़कियां थीं।  मनोहर कम पढ़ा -लिखा था परन्तु वह चाहता था की उसके सभी बच्चे शिक्षित हों।  इसीलिए उसने सभी बच्चों को गांव के मिडिल -क्लास स्कूल में भर्ती करवा दिया था। पर जैसा की गावों में शिक्षा का स्तर है , वहां ज्यादातर बच्चे अच्छा नहीं पढ़ पाये। जैसे-जैसे बच्चे बड़े होते चले गए मनोहर ने महसूस किया कि उसके पुत्रों को पढ़ाई -लिखाई में कोई रूचि नहीं है। आवारागर्दी से बेहतर है उन्हें खेती-बाड़ी व् मजदूरी में लगा दिया जाए ।

ग्रामीण जीवन
ग्रामीण जीवन 

परन्तु उसकी एक पुत्री विमला  पढाई में होशिआर थी।  अतः आठवीं कक्षा पास करने के बाद उसने आगे पढ़ने की इच्छा व्यक्त की।  परन्तु गांव में आठवीं से ऊपर स्कूल नहीं था।  इसका मतलब यह था की उसे आगे पढ़ने के लिए शहर में जाना पड़ेगा और खर्च में बढ़ोतरी होगी। फिर विमला अब 14 वर्ष की हो गयी थी , उसके घरवालों को अभी से उसकी शादी की चिंता सताने लगी थी। वैसे भी गावों में लड़की की शादी  की चिंता माँ-बाप को सुखा डालती है।  आये दिन पड़ोसिओं , रिश्तेदारों के शूलनुमा शब्द ; "अरे बेटी सयानी हो रही है , अभी से लड़का देखना शुरू कर दो , ज्यादा पढ़-लिख कर कौन सा तीर मार लेगी , शादी के बाद भी तो "चूल्हा -चौका " ही करना है उसे।  वगैरहा ...वगैहरा ...........

मनोहर असमंजस में था कि क्या करे !! परन्तु विमला की इच्छा को ध्यान में रखते हुए उसने उसका दाखिला पास के शहर में इंटर-स्कूल में करवा दिया और ठहरने की व्यवस्था हॉस्टल में करवा दी।  विमला अपनी पढाई में व्यस्त हो गयी और शीघ्र ही गरिमा व मुक्ता उसकी सहेलियां भी बन गईं।  गरिमा और मुक्ता  मध्यम -परिवार की लड़कियाँ थी।  गरिमा के  पिता सरकारी बाबू थे तो मुक्ता के पापा की किराने की दुकान थी ।  गरिमा का एक बड़ा भाई था जो "बी -टेक" की  पढाई कर रहा था।

समय बीतने लगा , विमला की पढाई आगे बढ़ने लगी , उसने 12 वीं की परीक्षा फर्स्ट -डिवीज़न से पास कर ली।  अब उसे कॉलेज में एडमिशन लेना था।  अतः जब उसने अपने माँ-बाप पर आगे पढ़ने की इच्छा ज़ाहिर की तो उन्होंने इंकार कर दिया।  और ये कह कर विमला को  अवाक कर दिया  कि उसका रिश्ता पास के ही एक ज़मीदार के बेटे से पक्का होने जा रहा है। जिनके पास 50 बीघा ज़मीन है तथा वे चार भाई व तीन बहनें हैं। (गावों में पुत्री का विवाह तय करने से पहले यह देखा जाता है की सामने वाले परिवार के पास कितनी ज़मीन -जायदाद है ताकि उनकी पुत्री को कोई परेशानी न हो )

विमला ने जब इस विवाह का विरोध किया तो उसके माँ -बाप ने उसे ताना मारते हुए कहा की , "जब तू 24 वर्ष की बूढी हो जायेगी तब शादी करेगी क्या। " "गावों की दूसरी बेटियाँ तेरे उम्र की हैं उनकी तो शादी भी हो चुकी है , हम कब तक तुझे बैठाकर खिलाएंगे , लोगों की बातें कौन सुनेगा "? ये ताने बेटी को कितने चुभते हैं , ये वो ही जानती है । विमला के  भाई भी अपने माँ -बाप की हाँ में हाँ मिलाने लगे। विमला के  कोमल दिमाग को समझ में नहीं आ रहा था की क्या करे , क्या न करे ! उसकी सहेली गरिमा व् मुक्ता ने तो कॉलेज का फॉर्म भी भर दिया था। अतः उसने पिता से कुछ दिनों का समय माँगा।

विमला ने शहर वापस आकर टीचर्स व् सहेलियों से कहा कि , "वो अब आगे नहीं पढ़ पाएगी। " उसने बताया कि क्यों उसके माता -पिता उसकी शादी करके अपने कर्तव्य से निवृत होना चाहते हैं। उसकी टीचर ने समझाया की यदि खर्चे की बात है तो तुम ट्यूशन पढ़ाकर अतिरिक्त कमाई कर सकती हो या किसी ऑफिस में पार्ट -टाइम काम भी कर सकती हो , परन्तु पढाई अधूरी मत छोड़ो , तुम कहो तो हम तुम्हारे माता -पिता से बात करें।

उसकी सहेली मुक्ता और गरिमा ने भी उसका साथ दिया और इस तरह 5 -6 लोगों की टीम ने विमला के माँ-बाप से मिलकर उन्हें समझाया की शादी तो सभी की होनी है चाहे लड़का हो या लड़की। परन्तु शिक्षा भी उतनी ही जरूरी है और शिक्षा पर लड़की का भी उतना ही हक़ है जितना लड़के का। हम चाहते हैं की वो भी स्वावलम्बी बने , समाज का महत्वपूर्ण अंग बने, न की एक बोझ ! लेकिन विमला के माँ-बाप ने किसी की एक न सुनी और तुरंत ही उसकी शादी कर दी गई और अब वो ससुराल में एक बाई की तरह जीवन गुजार रही है । इन सब नाइंसाफी के बाद भी वो अपने परिवार के बारे में अक्सर चिंतित रहती है और जब कभी अपने माँ-बाप से मिलती है तो लिपट कर बहुत रोती है। माँ-बाप यही कह कर उसे तसल्ली देते है की, "दुनिया की यही रीत है , बेटी माँ-बाप के लिए पराया -धन होती है "। अब तेरा ससुराल ही तेरा घर है । 

बेटियाँ : Daughters

उधर विमला की सहेली "गरिमा" के घर में एक हादसा हुआ , उसके पिता चल बसे । एक  परिवार जिसमें एक जवान बेटा और बेटी हों , जो अभी अपने भविष्य को सजाने-सँवारने के सपने देख रहें हों, ऐसे समय में यदि उनके पालनहार का हाथ उनके सिर से हट जाए तो उन पर क्या बीतती है, ये वो ही जानता है। गरिमा की माँ घरेलु महिला थीं [House Wife ] और भाई बी-टेक की पढाई कर रहा था। उन पर जैसे पहाड़ टूट पड़ा।  कैसे पूरी होगी पढाई , कैसे घर -खर्च चलेगा , कैसे बच्चों की शादी होगी , ये तमाम सवाल गरिमा की माँ को नोच रहे थे। PF  + Gratuity का कुल मिलाकर 8 लाख रुपया हाथ में आया।  नेचुरल डेथ पर 2 लाख रुपए लाइफ इन्शुरन्स का मिला। कुल मिलाकर 10 लाख रुपए। पर इस रकम से क्या होगा !! B.Tech और B.B.A. की पढाई ही 4 -5 लाख रुपया खा जाती है और फिर आगे बच्चों की शादी।  गरिमा की माँ तो जैसे टूट ही गयी थी। दिमाग सुन्न हो गया था। वो सोच-सोच कर पागल हो रही थी की पढाई में इतना रुपया खर्च हो गया तो दोनों बच्चों का विवाह कैसे होगा , दहेज़ कहाँ से जुटाया जाएगा। रिश्तेदार, दोस्त केवल सांत्वना दे सकते हैं , पैसा नहीं। या दे भी दें तो चुकाना तो पड़ेगा !

Middle class family
Middle-class-family
अतः गरिमा की माँ ने तय किया की वो अब उसे नहीं, केवल उसके भाई को ही पढ़ाएगी ताकि आगे चलकर उसे एक अच्छी नौकरी मिल जाए और घर चलता रहे। गरिमा को पढाई छोड़ने के लिए बाध्य कर दिया और उसकी भावनाओं की कोई कद्र न करते हुए ,उसकी शादी कर दी गयी। दामाद एक प्राइवेट कंपनी में था और सैलरी 13,000 रुपए प्रति माह। लड़के के पिता एक सरकारी अस्पताल में स्टोरकीपर थे परन्तु परिवार में एक पुत्र और एक पुत्री और भी थे। वे पढाई कर रहे थे। शादी के बाद गरिमा ने अपने ससुराल वालों से आगे पढाई करने की इच्छा व्यक्त की तो उसे मना कर दिया और कहा "घर सम्भालो , ये ही तुम्हारा कर्तव्य है। "

परन्तु जहाँ चाह ,वहां राह। उसने पति से निवेदन किया की घर का काम सँभालते हुए भी वो पढाई कर सकती है , बस उसे घर में कंप्यूटर व् इंटरनेट चाहिए वो पत्राचार से भी ग्रेजुएशन कर लेगी , ये पढाई बुरे समय में परिवार के ही काम आएगी। इस पर उसके पति ने घर में जिक्र किया और परिवार सहमत हो गया। इस तरह विमला कॉलेज में और गरिमा पत्राचार से आगे की पढाई में लग गईं। तीन वर्ष में दोनों का ग्रेजुएशन पूरा हो गया। इधर गरिमा एक लड़की की माँ भी बन गयी। उसके भाई ने बी -टेक पूरा कर लिया था , नौकरी के लिए आवेदन भी दे दिए थे , परन्तु अभी तक किसी भी कंपनी से जॉब का ऑफर नहीं आया था। शादी और पढाई में 10 लाख में से 7 लाख रुपया खत्म हो चुका था। चिंता और तनाव में गरिमा की माँ बीमार रहने लगी थी , अतः दवाइयों में भी पैसा खर्च हो रहा था। गरिमा जब अपनी माँ से मिलने गयी तो उन्होंने कहा की , "अगर तेरे भाई की नौकरी लग जाए तो इसका भी ब्याह कर दूँ। बहु घर आ जायेगी तो आराम मिल जाएगा। "

कुछ महीनो बाद गरिमा के भाई की नौकरी लग गई , परन्तु उसे अपने शहर से बाहर जाना पड़ा। वो एक किराये के मकान में रहने लगा। कुछ समय बाद उसके साथी जो उसके ऑफिस में काम करते थे वो भी उसके साथ रहने लगे और किराया आपस में बांटने लगे। जवानी के दिन थे , नए शौक लग गये। पिक्चर देखना , रेस्टोरेंट में खाना , बियर /शराब पीना आम बात होने लगी। तीन  महीने की ट्रैंनिंग के बाद गरिमा के भाई को पर्मानेंट कर दिया गया। कुछ महीनों बाद उसने अपनी माँ से अपनी शादी के बारे में जिक्र किया। बहु की तलाश शुरू हो गई। और काफी जद्दोजहद के बाद एक जगह बात पक्की हो गई। शादी हो गई। बेटे को बहु के साथ शादी के 10 वे दिन ही विदा कर दिया , ये सोच कर की जिसके लिए बहु आयी है उसी के साथ रहने दो।  

अब गरिमा की माँ अकेली थी। शुरू-शुरू में तो बेटे-बहु का फोन रोज आता था लेकिन धीरे-धीरे ये फोन आने कम होने लगे या आते भी थे तो केवल औपचारिकता के लिए। जैसे :- कैसी हो आप ? तबियत ठीक है न ? यहाँ आ जाओ , साथ में रहेगें। लेकिन माँ को ऐसा नहीं लगता था कि, " ये पुकार दिल से है" !

माँ एक दिन बीमार पड़ी तो पड़ोस के लोगों ने उसे अस्पताल में भर्ती कराकर उनके बेटे-बेटी को फोन किया। बेटी तो तुरंत आ गई पर बेटे ने आने में असमर्थता जाहिर की। और न ही बीमार माँ के लिए पैसों की कोई व्यवस्था करी।  गरिमा समझ गई की अब उसके भाई को हमारी जरुरत नहीं। बेटी ने माँ के जेवर गिरवी रखकर इलाज़ करवाया। माँ के ठीक होने पर उन्हें समझाया कि "मेडिकल -बीमा " करवा लो माँ , इससे बहुत सहायता मिलती है।  

बेटियाँ : Daughters

ठीक होने के पश्चात् गरिमा ने अपनी माँ से उसके घर चलने को कहा। माँ बोली , "क्या बोल रही है तू , तुझे पता है न कि लड़की की शादी के बाद उसके माँ-बाप लड़की के घर का पानी भी नहीं पीते ". गरिमा बोली , "हाँ माँ सुना तो बहुत है, लेकिन ऐसा क्यों है आज तक समझ में नहीं आया , क्या आपकी और अगर पापा भी होते तो उनकी जिम्मेदारी क्या लड़के को ही उठानी चाहिए , लड़की को क्यों नहीं। अगर पापा होते तो मैं आपको मजबूर नहीं करती , लेकिन अकेले तो मैं आपको नहीं छोड़ सकती"।  लेकिन बेटा,  "तेरे ससुराल वाले क्या सोचेंगे"। उन्हें सोचने दें , मुझे परवाह नहीं। मेरे लिए आपकी  ज़िन्दगी बेहद कीमती है। "लेकिन लोग बातें बनायेगें , कहेंगे कि "बेटी के घर का खा रही है" , नहीं -नहीं ये नहीं हो सकता। मैं अकेले रह लूंगी लेकिन तुझे और मुझे दुनियां की बातें सुननी पड़ें , ऐसा काम तो कभी नहीं करुँगी"। लेकिन माँ...... लेकिन -वेकिन कुछ नहीं , तू समय पर आ गई यही बहुत है मेरे लिए। 

गरिमा की समझ में कुछ नहीं आ रहा था , कैसे मनाए अपनी माँ को। तभी उसे अपनी सहेली मुक्ता की याद आयी। मुक्ता पढ़लिख कर बैंक में नौकरी कर रही थी। गरिमा ने मुक्ता को फोन लगाया और अपनी परेशानी बताई। मुक्ता ने कहा की वो रविवार को आकर उनसे मिलती है। रविवार के दिन मुक्ता और गरिमा ने विचार विमर्श किया और परिणाम ये था की, "माँ गरिमा के ससुराल में नहीं रहेगी बल्कि वो सिलाई सीखेंगी जिससे उनका समय भी पास होगा और कुछ कमाई भी होगी"। मुक्ता ने जब गरिमा की माँ को ये सुझाव बताया तो वो बोलीं बेटा मुझे तो सिलाई आती नहीं फिर कैसे ये काम करुँगी। मुक्ता ने कहा आप उसकी चिंता न करें आपको सिलाई सिखाई जायेगी। मुक्ता ने एक NGO से संपर्क किया जो उन महिलाओं को सहयोग करती थी जिनके पति गुजर चुके हैं और बेटे ने मुँह मोड़ लिया है। 

तीन महीने की ट्रेनिंग में गरिमा की माँ ने सिलाई सीख ली और आज वो 4000 रूपए महीने की कमाई भी कर रही हैं।  उनका समय भी पास हो रहा है और कुछ कमाई भी हो रही है। इस प्रकार गरिमा ने अपनी माँ को आत्मनिर्भर बना दिया। गरिमा की माँ सोचती हैं की, "बेटियां कितना ध्यान रखती हैं अपने परिवार का, और ये बेटे कैसे बदल जाते हैं समय के साथ -साथ "।   
 
अर्चना एक उद्योगपति की बेटी है । जाहीर है उसके लालन-पालन में कोई कमी नहीं रहेगी । अच्छा खाना-पीना , उच्च -स्तरीय शिक्षा , ऐशोआराम , आने -जाने के लिए कार । ज़िंदगी को अपने हिसाब से जीने के लिए भरपूर पैसा । ऊंचे घराने की बेटियाँ भी समाज के संस्कार सीखती हैं । और समय-समय पर अपने परिवार की पूरी ज़िम्मेदारी भी संभालती हैं । उनके परिवार का वातावरण इतना खुला होता है की मन की बात करने में कोई झिझक नहीं होती । अर्चना एक डॉक्टर बन चुकी थी और अपने निजी नर्सिंग-होम को चलाती  थी । 

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उसका एक छोटा भाई भी था , जो आटोमोबाइल का कोर्स करके अपने पिता के बिजनेस में सहयोग कर रहा था । अर्चना के पापा ने जब उससे शादी करने के लिए कहा तो वो बोली की , "पहले भाई की शादी कर दो , मैं अभी शादी नहीं करना चाहती" । उसके भाई की शादी हो गई । इस तरह तीन वर्ष गुजर गए , अर्चना अब दो बच्चों की बुआ बन चुकी थी । कुछ दिनों बाद एक हादसा हुआ , उसके भाई का सड़क एक्सिडेंट में देहांत हो गया । हँसते -खेलते परिवार में मातम छा गया । अर्चना के पापा एकदम टूट से गए, उन्होने ऑफिस जाना भी बंद कर दिया ।  उसकी मम्मी और भाभी गहरे सदमे में थीं ।  खामोशी और उदासी में दिन बीतने लगे । लगभग 6 महीने बाद ही अर्चना की भाभी ने भी दम तोड़ दिया । अब घर और पापा का बिजनेस संभालने की पूरी ज़िम्मेदारी अर्चना पर थी । फिर भाई के दो बच्चे भी थे उन्हें भी देखना था । चिंता ये थी की यदि उसने अपना घर बसा लिया तो उसके पापा के बिजनेस और घर का क्या होगा । और बच्चों के भविष्य का क्या होगा । इसलिए उसने फैसला किया की वो शादी नहीं करेगी और पापा का बिजनेस संभालेगी । उसके मम्मी-पापा ने बहुत समझाया लेकिन उसने अपना नर्सिंग -होम दूसरे डॉक्टर को सुपुर्द कर पापा के बिजनेस की बागडोर संभाल ली । अब वो अपने भाई के बच्चों को ही अपना समझती है और उनको  एक माँ का प्यार भी देती है । यही अब उसकी ज़िंदगी का उद्देश्य है । 

उपरोक्त तीनों कहानियाँ सच्ची हैं , बस पात्रों के नाम बदल दिये गए हैं । समाज में बेटियों के बलिदान की अनेकों कहानियाँ हैं , हम अपने आस-पास के परिवारों और रिशतेदारों में अक्सर उन्हें देखा करते हैं । बरसों पहले अभिनेत्री "राखी " की एक फिल्म "तपस्या " बनी थी जिसमे राखी ने एक ऐसी ही जिम्मेदार बेटी का कर्तव्य अभिनीत किया था । भले ही फिल्म की कहानी काल्पनिक रही हो लेकिन समाज में सच्ची कहानियों की कमी नहीं है । 

"इसलिए मेरा उन माता-पिता से अनुरोध है की बेटिओं को बेटों से कम न समझें और उन्हे उतने ही अधिकार और  प्यार दें जितना वो बेटों को देते हैं । " उन्हें शिक्षित कर अपने पैरों पर खड़ा करने लायक बनाएँ । 

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