Accident
भूल गए सब कुछ !!! Forgot everything !!!
भूल गया सब कुछ |
अहसान -फरामोश , लालची , स्वार्थी चल निकल यहाँ से " और सुन "आइंदा मुझे कभी अपनी शक्ल मत दिखाना , वरना वो हाल करूंगी की दादी-नानी याद आजाएगी ".
"तुझे मैंने अपनी सारी बातें इसीलिए बताई थीं की तू उनको मेरे विरोधियों को बता दे " , "कैसी दोस्त है तू ? अरे तुझसे तो वो कुत्ता ही अच्छा है जो अपने मालिक का वफादार तो रहता है। भले ही मालिक उसे कितना ही मारे , भूखा रखे , डांटे लेकिन वो वफ़ादारी नहीं भूलता। लेकिन इंसान, अक्सर गद्दार ही निकलता है । धिक्कार है !!!!
ज़िन्दगी में कभी -कभी ऐसे कडवे अनुभव होते हैं , जैसे :- जिन्हें हम अपना समझते हैं, उनसे अपने दुख-दर्द साझा करते हैं , समय आने पर वो ही गद्दारी कर जाते हैं। तब दिल से उपरोक्त क्रोध प्रकट होता है और सम्बन्ध हमेशा के लिए कटु हो जाते हैं। बातें भुलाये नहीं भूलती। जी करता है की दुनिया से किनारा कर लो। बंद कर दो सारे सम्बन्ध , मोबाइल को "ऑफ" कर दो हमेशा के लिए। हरिद्वार या वृन्दावन या दुनियादारी से दूर चले जाओ और भगवान् का जाप करो। कोई पूछे भी तो किसी को मत बताओ की तुम कहाँ हो।
जिन्होंने हमें धोखा दिया है , उनकी शक्ल तक देखने की इच्छा नहीं होती। उनकी हरकतों की चर्चा सभी ओर कर दी जाती है। और कभी -कभी तो दूसरे मित्रों और रिश्तेदारों को यहाँ तक धमकी दे दी जाती है कि , "अगर उससे सम्बन्ध रखा तो अपने सम्बन्ध खत्म समझो ".
"इन्हीं विचारों के बीच अचानक दरवाज़े की घंटी बजी। और ऋषि को सामने देखकर मैं सकपका गई । ऋषि मेरी उसी सहेली का भाई था जिसको मैंने बहुत गालियां दी थी और अपने दिल से निकाल दिया था । " मैंने पूछा क्या हुआ ? उसने कहा , अंदर आने के लिए नहीं कहेगी क्या ?"मैंने मन ही मन सोचा , "इसकी बहन को तो इतनी गालियाँ दी हैं, जिसे मैं कभी माफ नहीं कर सकती , फिर उस बेशरम ने कैसे हिम्मत कर के मेरे पास अपने भाई को भेजा है ।" मैंने उसे बैठने के लिए भी नहीं कहा और बाहर से ही चले जाने को कहा । लेकिन ऋषि बोला, " दीदी की कंडीशन अच्छी नहीं है , वो अस्पताल में भर्ती है "। आप उनकी पुरानी दोस्त हो , सोचा मिलकर ही आपको बता दूँ की दीदी का एक्सिडेंट हो गया था और वो 7 दिन से बेहोश हैं ।
दिल को बहुत तसल्ली मिली की, "आखिरकार उसको उसके कर्मों का परिणाम मिल ही गया "। बहुत बुरा किया था उसने मेरे साथ । फिर मैंने अपने आप को थोड़ा समझाया की, "आखिर ऋषि की क्या गलती है उसे तो बैठने के लिए बोल दे "। मैंने ऋषि को बैठने के लिए कहा और सारी बात पूछी, "कि आखिर एक्सिडेंट कैसे हुआ ?" उसने बताया स्कूटी से ऑफिस जा रही थी तभी सामने से आते ट्रक ने टक्कर मार दी । वो सड़क पर गिर पड़ी , स्कूटी कहीं , हेलमेट कहीं और शरीर कहीं । कुछ लोगों ने उन्हें अस्पताल में भर्ती करवाया और हमें खबर दी । सभी को इन्फॉर्म कर दिया था । मम्मी ने कहा आप उनकी पुरानी फ्रेंड हो तो मैं आपसे मिलकर सारा हाल बता आऊँ। अच्छा तो अब मैं चलता हूँ , हॉस्पिटल में भी बहुत भागदौड़ करनी है । मैंने कहा, "ठहर मैं भी साथ चलती हूँ ।"
हॉस्पिटल जाकर देखा था तो अनीता अभी भी बेहोशी कि हालत में थी । पूरे सिर पर पट्टियाँ लगी हुई थीं । डॉक्टर ने बताया कि सिर के बल से गिरने पर काफी चोट आई है , इलाज़ चल रहा है , थोड़ा समय लगेगा होश आने में । मैं कुछ समय बैठ कर आंटी-अंकल को सांत्वना देकर घर वापस आ गई । फिर रोज मैं उसका हाल-चाल मोबाइल पर ही लेने लगी । कुछ दिनों के बाद सूचना मिली कि अनीता को होश आ गया है , लेकिन .................... उसकी याददाश्त अभी वापस नहीं आई है।
सोचा कि चलो उसे देख आती हूँ, हांलाकी उसने मेरे साथ अच्छा नहीं किया । विचार आने लगे कि, "उसकी याद वापस आने पर उसे बताऊँगी कि मेरे साथ तूने बुरा किया न, उसी का फल भगवान ने तुझे दिया है "। हॉस्पिटल पहुँचने पर उसे देखकर दुख भी बहुत हुआ । उसने मुझे देखा तो सही लेकिन पहचान नहीं पा रही थी । डॉक्टर सभी को सलाह दे रहे थे की अनीता को कुछ पुरानी बातें याद कराओ , उसे पुरानी चीजें दिखाओ ताकि उसकी याददाश्त में कुछ सकारात्मक संकेत नज़र आयें । उसके परिवार के सदस्य व अन्य दोस्त भी मदद कर रहे थे , लेकिन कुछ विशेष लाभ नहीं हो रहा था । उसकी याद वापस लाने के प्रयास का सिलसिला अभी भी जारी था ।
" इंसान जब तक होश में हो तभी तक उसे मान-अपमान , दुःख-सुख , तेरा-मेरा आदि विचार परेशां करते हैं। लेकिन अचेतन मन को कुछ भी याद नहीं रहता। "
ऐसा ही कुछ बच्चों का भी हाल है। उन्हें कितना भी डांट दो , आँखें दिखा दो , पीट दो। लेकिन कुछ समय बाद ही वो एकदम नार्मल होकर हमसे आकर लिपट जाते हैं , जैसे उनके साथ कुछ बुरा हुआ ही नहीं और बस अपनी मस्ती में फिर से मस्त हो जाते हैं। बच्चे ही क्या पशुओं में भी मान-अपमान को लेकर कोई मतभेद दिखाई नहीं देता ।
यह कहा जा सकता है कि, "बिना भावनाओं के इंसान पशु के समान है । " तो दूसरी ओर ये भी सुनते हैं कि , "यदि गलती कि सजा न दी जाये तो इंसान और गलती करता है , जो परिवार , समाज के लिए घातक होता है । " लेकिन क्या सजा देने से इंसान सुधार जाता है ? यदि ऐसा होता तो बच्चे ढीठ नहीं होते !! अपराधी और घातक नहीं बनते !! दैनिक जीवन का तो अनुभव यही रहा है और अक्सर अखबार में पढ़ने पर भी पाते हैं कि , "अमुक अपराधी पैरोल या जमानत पर छूट कर फिर से अपराध करने लगता है " ।
इंसान जैसे-जैसे बड़ा होता जाता है, अच्छे -बुरे, हँसी-खुशी , मान-सम्मान में अंतर करने की समझ विकसित होती वो आसानी से अपने साथ हुए बुरे बर्ताव को नहीं भूलता । क्या ये संभव नहीं है कि इंसान अपने साथ हुए बुरे वरताव को भूल जाये , ऐसे जैसे कि कुछ हुआ ही नहीं था । लेकिन अहम, स्वाभिमान आदि भावनाएं उसे कुछ भी भूल जाने से रोकती रहती हैं । चेतन , परिपक्व दिमाग में यही विशेष बात है की उसमें यादें लंबे समय तक स्टोर रहती हैं । और अचेतन दिमाग इन सबसे अलग होता है ।
इसी बीच खबर आई कि , "अनीता कि याददाश्त कुछ ठीक हुई है , उसने अपनों को पहचानना शुरू कर दिया है । इंसान अक्सर ताने मारने और कटाक्ष करने, दूसरे को नीचा दिखाने के मौके ढूँढता है। मैंने भी सोचा यही मौका है जाकर उसे उसके कर्मों के फल के बारे में बताऊँ !!! जब में हॉस्पिटल पहुंची तो अनीता ने हल्की सी हँसी मेरी तरफ उछाल दी । इधर -उधर कि बातें करके मैं असली मुद्दे पर आ गयी , और वो सब बताया जो उसने मेरे साथ किया था । वो बोली , "मुझे तो कुछ भी याद नहीं है , फिर भी यदि मेरे से ऐसी गलती हुई है तो मुझे माफ कर दो "।
रिश्ते , संबंध , मित्रता में कभी-कभी कटुता आ ही जाती है । रिश्ते , संबंध फायदे-नुकसान के लिए नहीं होते बल्कि जीने का सहारा होते हैं । दुख-दर्द में सच्चे-संबंध ही काम आते हैं । जिन्हें इन सम्बन्धों की परवाह होती है वो उस कटुता को भुलाने का प्रयास करते हैं । इस दुनिया में कोई भी ऐसा इंसान नहीं है जो परिपूर्ण हो । समय -समय पर इंसान भगवान को कोटी-कोटी धन्यवाद भी देता है तो भला-बुरा भी कह जाता है । लेकिन क्या ईश्वर से नाता तोड़ देता है ?
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