कर्म-फल ; Karm-phal - ज़िन्दगी के अनुभव पर Blog : Blog on Life experience

गुरुवार, 3 सितंबर 2020

कर्म-फल ; Karm-phal

कर्म-फल ; Karm-phal  

karm-phal
कर्म फल चक्र 
क्या हम इस बात में विश्वास करें कि, " जो भी कर्म हम करते हैं, उसका फल हमें अवश्य प्राप्त होता है "?
क्या कर्म अच्छे /बुरे होते हैं ?  क्या उनके फल भी अच्छे -बुरे होते हैं ? 
क्या किसी का दिल दुखाने से हम दुखी होने से बच सकते हैं ?
क्या दुआओं में असर होता है ? क्या दुआओं से अच्छे परिणाम प्राप्त होते हैं ?
क्या व्यक्ति ,परिवार , समाज और कोई देश अपने व्यवहार के कारण उन्नत या अवनत हो सकता है ? 

जब एक पुलिस-इंस्पेक्टर एक चोर को गिरफ्तार करता है , तो उस समय चोर की "हाय" क्या उस इंस्पेक्टर की ज़िन्दगी में असर डालती है ??????????

जब एक खूनी को फाँसी पर लटकाया जाता है , उस समय उस  व्यक्ति की बद्दुआ क्या "जज" या "वकील" के जीवन में  कुछ अनिष्ट कर सकती है ????????????

अनुभव यह है की एक व्यक्ति जो कर्म करता है, वो उसे अपने हिसाब से उचित मानता है , दुसरे की नज़र में वो गलत है या नहीं, इस पर शायद ही विचार करता है। और यहीं से कर्म का बहीखाता प्रारम्भ होता है। 

कभी  ये  भी अनुभव होता है की ये सब बातें काल्पनिक और अपने मन को तसल्ली देने के लिए ही होती हैं। क्यूंकि हमने अपनी ज़िन्दगी में अनेकों अपराधियों को ऐश्वर्य की ऊंचाई पर भी चढ़ते देखा है ! उन्हें धनवान , पूंजीपति बनते देखा है , उन्हें  अपराधी से नेता और फिर मंत्री तक बनते देखा है। 

तो कभी  ज़िन्दगी का अनुभव यह कहता है कि इंसान का व्यवहार या कर्म उसके पतन और उत्थान के लिए जिम्मेदार जरूर होता है। सुनते हैं की "पाप के पास ताक़त तो बहुत होती है लेकिन उसकी उम्र बहुत छोटी होती है"! यह भी सुनते हैं की "कभी किसी की "हाय "नहीं लेनी चाहिए , ये "हाय" बर्बाद कर देती है "!! तो दूसरी तरफ ये भी सुनते हैं की , "अच्छे कर्म करो तो जीवन सुधर जाएगा"। 

ज़िन्दगी में ऐसे भी अनुभव देखे हैं की कोई व्यक्ति कभी बहुत ताक़तवर था, लेकिन कुछ समय बाद उसकी ताक़त समाप्त हो गई या कालांतर में वे  हाशिये पर आ गए या अंत बुरा ही हुआ !! हिटलर , ज़िआ -उल -हक़ , लालू प्रसाद , मुलायम सिंह , ओसामा -बिन -लादेन , विकास दुबे , अमर सिंह , वीरप्पन , चार्ल्स शोभराज आदि -आदि। फिल्मों में भी बुराई का अंत बुरा ही दिखाया जाता है। 

तो दूसरी ओर ये भी देखते हैं की जिन लोगों ने अपने स्वार्थ से उठकर , अन्य लोगो की भलाई में अपना जीवन समर्पित कर दिया, वो अपनी मृत्यु के बाद आज भी लोगों के दिलों में ज़िंदा हैं। राम, कृष्ण , चाणक्य , महाराणा प्रताप , छत्रपति शिवाजी , महात्मा गाँधी , सुभाष चंद्र बोस , जवाहर लाल नेहरू , मार्टिन लूथर , मदर-टेरेसा , नेल्सन मंडेला , विवेकानंद आदि। 

कर्म-फल ; Karm-phal  

karm phal
कर्म -फल 
वाक्या:- बात उन दिनों की है जब मेरी पोस्टिंग सिरोही  [राजस्थान ] में थी। चूँकि बैंक में सभी तरह के ग्राहक होते हैं। सर्विस -क्लास, व्यापारी , वकील, शिक्षक। 
 अतः दो  आयुर्वेदिक दवाइयों की दूकान के खाते बैंक में थे। उनसे निकटता होना स्वाभाविक था। दोनों दुकाने आयुर्वेदिक -अस्पताल के सामने ही थीं। जब भी मैं अस्पताल जाता तो डॉक्टर को दिखाने के बाद , या तो वो  दुकानदार या उसका नौकर , तुरंत ही अस्पताल में आकर पूछता की , "क्या दवा लिखी है "?  "लाइए , मैं आपको ला देता हूँ। आप परेशान न हों "। कहने का तात्पर्य यह है की वो सभी मरीजों और उनके रिश्तेदार या मित्र, जो साथ में आये हुए होते हैं, उन्हें  बाहर आकर  दुसरे दुकानदार से मिलने का मौका  देना ही नहीं चाहता था। उसकी इस सेवा से ग्राहक तो खुश थे, लेकिन दूसरा दुकानदार बेहद निराश था । दुसरे दुकानदार के मन में यह बात घर कर गई थी, की वो उसका मुक़ाबला नहीं कर सकता। और हुआ भी यही कुछ महीने दूकान न चलने के बाद , उसे अपना धंधा बंद करने का विचार किया । 
 
एक बार जब मैं जानबूझकर दूसरे दूकानदार से दवाई लेने गया। तो वो बोला, "शर्माजी हम उसका मुक़ाबला नहीं  कर सकते !! हम सोच रहे हैं की हमने जो क्रेडिट-लिमिट ले रखी है , उसे तुरंत बंद करदें। क्यूंकि , हम उसके जैसे बेशर्म नहीं हो  सकते !! जो व्यक्ति मरीज़ को , या उसके रिश्तेदार को अस्पताल से बाहर आने से पहले ही , घेर कर दवा उसे देदे। ऐसे व्यक्ति के स्तर तक  हम नहीं गिर सकते!!! माना की हम दवाइयाँ बेचते हैं , लेकिन उसके लिए मरीज़ को बीच में ही पकड़ लेना , उनकी सोच होगी , हमारी नहीं "। हमारा उद्देश्य है , "जियो और जीनो दो". 

मैंने कहा, " शास्त्री जी , कोसने से कुछ नहीं होता। वो कहावत नहीं सुनी आपने की , "कसाई के कोसने से पड्डा कभी नहीं मरता ". आप भी अपनी रणनीति बदलिए , लोगों से संपर्क बढ़ाइए। ये व्यापार है , दूकान में बैठे रहने से ग्राहक नहीं आते, और  वो भी जब की ग्राहक के पास अन्य विकल्प उपलब्ध हों। फिर भी , यदि आपको अपनी दवा और फार्मूला पर विश्वास है, तो एक दिन आएगा की आपकी दूकान उससे ज्यादा चलेगी"। 
दिन बीते , महीने बीते। एक दिन पहले दूकानदार ने मुझे अपनी बड़ी पुत्री के विवाह का निमंत्रण -पत्र दिया और कहा,  "शर्माजी शादी में अवश्य आना है"। मैंने कहा, "ये भी कोई कहने की बात है, अगर नहीं बुलाते तो झगड़ा हो जाता "। शादी हुई , बहुत तामझाम था शादी में , अच्छा पैसा लगाया था शादी में ।  उसके एक वर्ष पश्चात् उस दुकानदार की दूसरी बेटी की शादी का निमंत्रण मुझे मिला। उसकी शादी में भी हम सम्मिलित हुए और बहुत बधाई और अनेकों शुभकामनाएं भी दीं। आश्चर्य की बात ये थी की उसकी बच्ची की शादी में दूसरा दुकानदार भी बधाई देने वालों में शामिल था !!

कुछ महीनों पश्चात् मुझे पता लगा की पहले वाले दुकानदार की बड़ी बेटी का उसके पति के साथ सम्बन्ध ख़राब चल रहा है। दोनों में अनबन आम बात हो गई थी , जबकि उनका प्रेम -विवाह हुआ था। बात इतनी बढ़ गई थी उसकी बेटी अब अपने माँ -बाप के पास आकर ही रह रही थी। 
उधर उसकी छोटी बेटी का भी ससुराल में बुरा हाल था। उसका पति उससे ठीक से व्यवहार नहीं कर रहा था। आये दिन दोनों में कहासुनी होती रहती थी। लड़की के पिता यानी वो दुकानदार महीने में लगभग दो बार बेटी के ससुराल जाकर मामले को निपटाने का प्रयास करते रहे , लेकिन बात नहीं बनी। हारकर वो अपनी छोटी बेटी को भी मायके ले आये। अब उनकी दोनों शादी-शुदा बेटियाँ पीहर में ही रहने लगीं। बच्चियां पढ़ी -लिखी थीं। अतः दोनों अपने खर्चे लायक काम कर लेती थीं। 

कुछ समय पश्चात् मेरा ट्रांसफर सिरोही से बाड़मेर हो गया। एक साल बाद किसी काम से जब में वापस सिरोही गया, तब पता चला की उस दुकानदार की बड़ी बेटी ने आत्महत्या कर ली थी। और छोटी बेटी का तलाक़ हो गया था। उससे मिलने पर ऐसा लगा की वो अपनी उम्र से पहले ही बूढ़ा हो चूका हो। पुछा की कामधंधा कैसा चल रहा है , तो बोले की अब पहले वाली बात नहीं रही , काम में मन नहीं लगता अतः ज्यादा भागदौड़ भी नहीं करता। शायद बेटियों का ग़म उसे खाये जा रहा होगा। 

उधर , दुसरे दुकानदार से भी मिला। उसने भी बहुत अफ़सोस प्रकट किया। लेकिन यह सुनकर अच्छा लगा की उसकी दूकान अब पहले से अच्छी चल रही है। और अब मरीजों को अस्पताल में ही नहीं रोका जाता है। 

कर्म-फल ; Karm-phal 

तब कहीं दिमाग़ में ये बात तो घर कर गई , "कि कर्मों का हिसाब देर से सही , होता जरूर है , और इसी जन्म में ही होता है "। माँ -बाप के कर्मो की सजा बच्चे और बच्चों के कर्मो की सजा माँ-बाप को भुगतते हुआ देखा भी है। व्यक्तिगत कर्म का फल व्यक्ति विशेष को, सार्वजनिक  कर्म का फल  सार्वजनिक होता है। 
तो क्या उपरोक्त प्रसंग में पिता के कर्मो की सजा बेटियों को मिली या बेटियों के कर्मों की सजा पिता को मिली !!व्यक्ति तो अपने कर्म अपने-अपने हिसाब से करता है तो फल उसे ही मिलना चाहिए। लेकिन ऐसा नहीं है, किसी एक व्यक्ति के कर्म से यदि दूसरा व्यक्ति , परिवार या समाज प्रभावित होता है तो सजा सभी को मिलती है। क्यूँकि इस जगत में सभी जीव प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप में एक-दुसरे से जुड़े हुए हैं। हो सकता है की वो अपने व्यापार में इतना व्यस्त रहा हो की बच्चियों की परवरिश में कमी रह गयी हो। 

कुछ बच्चे जन्म से अपंग या विकृत पैदा होते हैं और जीवन भर परेशान रहते हैं। तो क्या ये उनके पूर्व जन्म के कर्मों का फल होता है ? नहीं , ये माँ के गर्भ में पोषण ठीक से न होने के कारण होता है। इसीलिए आजकल गर्भवती माँ के समयांतराल पर अनेक टेस्ट करवाए जाते हैं। ताकि शिशु व माँ सुरक्षित हो सकें। पुराने समय में जब मेडिकल साइंस इतनी विकसित नहीं थी, तब इसे पूर्वजन्मों का फल माना जाता था। और बुखार आने पर इसे "देवी का प्रकोप" कहा जाता था। जबकि आज के समय में हम अच्छी तरह जानते हैं की बुखार क्यों आता है। 

क्या है इस कर्म-फल का रहस्य ? क्या भगवान् सारा लेखा-जोखा रखता है और समय आने पर दंड या पुरस्कार देता है ? धार्मिक -पुस्तकें तो यही बताती हैं। भागवत -गीता में तो यही बताया गया है। लेकिन वैज्ञानिक कारण  है "कार्य -कारण सिद्धांत " [Cause and Effect Rule ] अर्थात किसी भी घटना के पीछे कोई कारण अवश्य होता होता है !! जैसे बारिश का कारण बादल , बादल का  कारण वाष्पीकरण होता है। उसी तरह से भूकंप का कारण  धरती का हिलना और धरती हिलने का कारण चट्टानों का पिघलना और  चट्टानें पिघलने का कारण धरती के गर्भ का गर्म होना। 
इंसान के सारे कार्य शारीरिक , वैचारिक और मौखिक होते हैं। ये सारे कार्य ही फल बनाते हैं। नकारात्मक सोच नकारात्मक परिणाम , सकारात्मक सोच सकारात्मक परिणाम। करके देखिये !! इंसान जो भी कर्म करता है वो उसके मस्तिष्क में अंकित रहता है। गलत कर्म करने पर मस्तिष्क उसे एक बार रोकता है , और उस कर्म को करने पर व्यक्ति के मन में डर अवश्य होता है, और इसी डर के कारण उसकी उचित निर्णय लेने की क्षमता कमजोर होने लगती है, और वो गलत काम करता ही जाता है। अतः परिणाम भी गलत ही प्राप्त होते हैं। 

इस प्रकृति ने प्रत्येक वस्तु, प्रत्येक प्राणी को प्रदान की है। उन सभी पर सबका समान अधिकार है। अतः  अपना पेट पालने के लिए प्रत्येक व्यक्ति को अपना व्यवसाय करने का भी अधिकार है। और यदि कोई उसके व्यवसाय में केवल इसलिए टांग अड़ाता की उसे कुछ न मिले और सब कुछ में हड़प जाऊँ, तो दुसरे को तकलीफ तो होगी ही। प्रतिक्रिया स्वरुप उसमे द्वेष भाव पैदा होगा और जब कभी दोनों की नज़रें मिलेंगी तो द्वेष स्थानांतर हो जायेगा। ये द्वेष -स्थानांतरण दोनों व्यक्तियों के मस्तिष्क में अपनी जगह बनाकर गलत काम को और प्रेरित करेगा। परिवार , ऑफिस और व्यापार में आये दिन झगडे इसी कारण से होते हैं। 

यक़ीनन हम कह सकते हैं की हमारे कर्म हमारे फलों को निर्धारित करते हैं। अच्छे और बुरे फल कर्मों के कारण होते हैं। सोचसमझकर किसी की भावना को आहत करना , अपने लिए आगे का मार्ग कठिन करना है। विचार यदि शुद्ध हैं तो दिमाग भी स्वस्थ है और स्वस्थ दिमाग ही परमार्थ करता है। एक चोर / खूनी की हाय का इंस्पेक्टर, वकील और ज़ज़ की ज़िंदगी पर बुरा प्रभाव इसलिए नहीं पड़ता क्यूँकि अन्य लोगों की शुभकामनाये उनके साथ होती है। प्रकृति में ही ऐसी व्यवस्था  है जो कर्म का पुरस्कार  और दंड देती है। 
"विवेकपूर्ण हितकारी कर्म सदैव शुभ फल देते  हैं ".  

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