रोता हुआ आसमान ; The weeping sky !! - ज़िन्दगी के अनुभव पर Blog : Blog on Life experience

शुक्रवार, 24 जुलाई 2020

रोता हुआ आसमान ; The weeping sky !!

रोता हुआ आसमान ; The weeping sky !!


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रोता हुआ आसमाँ 
हाँ भाई जनक,  पैंट के लिए कमर का साईज़ नोट करो 38 इंच , लम्बाई 42 इंच  , नेफे से लम्बाई 33 इंच , दो जेब आगे तिरछी , दो जेब पीछे , एक छिपी जेब भी। अब शर्ट का नाप नोट करो कन्धा 14 इंच , बाहें 12 इंच , लम्बाई 32 इंच , कोलर लम्बा रखें या छोटा रखूं साहब । हुँ .....छोटा ही रख दो , आजकल तो छोटे कोलर का ही ज़माना है।  एक जेब भी लगा देना। ठीक है साहब। सिलकर कब तक तैयार हो जायेंगे। आज तारीख हो गयी 15 तो अगले महीने की 2 तारीख को कपडे तैयार मिल जाएंगे साहब। अरे नहीं प्रीतम भाई , मुझे तो अगले सप्ताह ही शादी में जाना है , थोड़ा जल्दी करो न। साहब , शादियों का सीजन चल रहा है , काम बहुत है , फिर भी मैं कोशिश करूंगा 25 तारीख तक देने की। पक्का , ऐसा तो नहीं बाद में कह दोगे  कि 2 दिन और लगेंगे। नहीं- नहीं ऐसा नहीं होगा। आप एक बार 24 तारीख को याद दिला देना। अरे , जनक लो दिलीप को कह दो कपड़ों की कटिंग तैयार कर दे । और सेवा बताइये साहब ? नहीं बस ठीक है चलता हूँ। ठीक है साहब ...........


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Tailor-shop
ये दुकान है "टेलर मास्टर प्रीतम"  की जिनकी टेलरिंग का सिक्का सन 1980 से पुरे शहर में चलता था। शहर का हर रईस अपने कपड़े मास्टर प्रीतम से ही सिलवाता था। सिलाई थोड़ी महंगी थी पर ग्राहक संतुष्ट थे। काम की कमी नहीं थी , हाथ के नीचे 25 कारीगर , फिर भी कई बार तो आर्डर केंसल करने पड़ते थे। लगभग 18 घंटे केवल सिलाई का काम। पैसा बरस रहा था। मकान खड़ा हो गया था , आराम की हर चीज घर में बस गई थी। मोटर-साईकिल भी ले ली थी। उसका आसमान बुलंदी पर था। 


समय अच्छा चल रहा था। लेकिन कहते हैं  "समय एक सा नहीं रहता ". कुछ सालों  बाद प्रीतम को अहसास होने लगा की ग्राहकों का आना कम हो गया है। उसकी आमंदनी कम हो रही थी। दो कारीगरों को मजबूरन काम के लिए मना करना पड़ा। धीरे-धीरे कारीगरों की संख्या 10 , उसके बाद 8 , फिर 6 और और अब केवल 2 ही कारीगर उसके हाथ के नीचे काम कर रहे थे। आमंदनी कम हो गई थी।  बढ़ते वैश्वीकरण [Globalization ] के कारण और सरकार की नई उदारीकरण की नीतियों के कारण रेडीमेड कपड़ों की बिक्री ने जोर पकड़ा। मार्किट में स्थापित होने के लिए बड़ी-बड़ी अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों [MNC ] ने कम कीमत पर बढ़िया क्वालिटी के रेडीमेड कपड़ों की रेंज मार्किट में उतार दी। बच्चे , महिला , पुरुष , बूढ़े  सभी ग्राहकों  को अब अपनी पसंद के कपडे तुरंत और उचित दाम पर उपलब्ध थे। अतः अब 1500 /- रुपए का शर्ट -पैंट का कपडा लेकर 600 रुपए की सिलाई देने के बाबजूद 15 दिन का इंतज़ार करना किसी को मंजूर नहीं था।  खासकर , जब की बढ़िया क्वालिटी के शर्ट -पेंट 1200 /- में मिल रहे  हों !

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प्रीतम की पत्नी "अलका " को शायद इस बात का अहसास हो रहा था । पति यदि घर के खर्चों में कटौती की बात करने लगे तो पत्नी को अहसास हो जाता है की हाथ तंग है !! अलका ने एक दिन हिम्मत करके आखिर पूछ ही लिया , "क्यों जी,  आजकल हाथ तंग है क्या ?" "अरे तुम्हें कैसे पता चला" !!  वो पत्नी ही क्या जो अपने पति की परेशानी को न समझ सके। हाँ अलका,  आजकल हाथ थोड़ा तंग  चल रहा है। दरअसल , अब ग्राहकों का आना कम हो गया है। जब से मार्किट में रेडीमेड कम्पनिओं का अम्बार लग गया है , बड़े-बड़े स्टोर , शॉपिंग-मॉल खुल गए हैं। उनसे टक्कर लेना मुश्किल हो गया है। जानती हो, आज से 10 साल पहले अपने शहर में 100 टेलर -मास्टर थे , जो आज गिनती के 20 रेह गए हैं ! क्या बात कर रहे हो ! हाँ-हाँ मैं सही कह रहा हूँ। फिर अब हम अपना गुजारा कैसे कर रहे हैं ? अपना गुजारा तो हो जाएगा , पर मेरे हाथ के नीचे  जो कारीगर काम करते हैं , उनका क्या होगा ? मेरी मजबूरी है उनको निकालना ! और लगता है कि मुझे भी काम का तरीका बदलना पड़ेगा। वो कैसे ? देखो कुछ सालों पहले डैली 50 शर्ट -पैंट की सिलाई होती थी। और अब बमुश्किल 10 शर्ट -पैंट ! जिन कारीगरों को मैंने मजबूरी में निकाल दिया था। उन्होंने अलग से अपनी दुकान खोलकर काम करने की कोशिश करी , लेकिन कुछ ही महीनों में बंद कर दी। अरे , जब कपड़े सिलवाने ही कोई नहीं आयेगा तो कब तक दूकान का भाड़ा जेब से भरेगा बेचारा। कुछ कारीगरों ने तो पुराने कपड़ों की मरम्मत का भी काम शुरू कर दिया है। कुछ घर से तो कुछ सड़क के किनारे बैठकर कपडे रिपेयर का काम कर रहे हैं। बुरा हो सरकारी नीतियों का जिन्होंने हमारे कारोबार को बट्टा लगा दिया। "सरकार को क्यों दोष देते हो जी"। सरकार भी परिस्थिति की मारी हो सकती है। उदारीकरण से दूसरे पढ़े -लिखे बच्चों को तो काम मिला ही है न। हमारा बेटा भी तो आज एक विदेशी कंपनी में ही काम कर रहा है। अगर सरकार ये परिवर्तन न करती तो बेरोजगारी की समस्या से निपटने का दवाब जो  सरकार पर होता है , उससे कैसे निपटती ?

बात तो तुम्हारी ठीक ही है। लेकिन बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ हमारे देश के छोटे कारीगरों को तो बर्बाद कर ही रहीं हैं न। उन कारीगरों के बारे में सरकार ने क्या सोचा। क्या सरकार की सोच ये है की हम अपना धंधा बंद करके , इन बड़ी कंपनियों में काम करें और उनके गुलाम हो जाएँ। मुझे कल ही पता चला कि जनक जो मेरे हाथ के नीचे काम करता था। एक बड़े से मॉल में काम कर रहा है। और पता है काम क्या है ? जो ग्राहक मॉल में रेडीमेड कपडे खरीदने आते हैं उन कपड़ों के  छोटे-बड़े होने पर उनकी फिटिंग करना। अब बताओ उसका तो ग्राहक से सीधा कोई संपर्क भी नहीं जो वो सम्बन्ध बना सके। ग्राहक आयेगा , कपडे खरीदेगा, तब स्टोर -मालिक उसे काम देगा !! तो हो गया वो स्टोर -मालिक पर निर्भर। और मान लो कुछ समय बाद स्टोर ही बंद हो जाए , तब क्या होगा। या कोई ऐसी घड़ी आ जाए जिससे स्टोर क्या ,पूरा मॉल ही लम्बे समय के लिए बंद हो जाए तो क्या करेंगे जनक जैसे कारीगर ??  इनके पास इतनी बचत नहीं होती कि दो-चार महीने बैठकर खालें। और सिलाई एक ऐसा काम है जिसमे अनेकों हाथ शामिल होते हैं मसलन कटिंग , सिलाई , तुरपाई , बटन -फिटिंग , इंटरलॉकिंग , और इन कामों से  दूसरे लोग भी रोजगार पाते हैं।

अभी परसों की बात है अपने एक कारीगर चेतन की पत्नि मुझसे मिलने दुकान पर आयी थी और कह रही थी , "भाई साहब , मैने सुना है आपने इनको दूसरी जगह काम करने के लिए कह दिया है।  ऐसे कैसे चलेगा , कितने सालों से ये आपके यहाँ काम करते आ रहे हैं , अब अचानक उन्हें अगल कर देगें तो हमारा क्या होगा ? क्या इतने सालों की वफ़ादारी का ये नतीजा दे रहे हैं आप ?" मेरा दिल दुखी था , पर चेतन की पत्नि को कैसे समझाऊँ कि हालत अब पहले जैसे नहीं रहे। मैं उनका अन्नदाता था लेकिन अब मेरे हालत ही जब खुश्क हो रहे हैं तो दान कैसे करूँ। चेतन की पत्नि से हाथ जोड़कर क्षमा मांग ली मैंने , पर चेतन को परिस्थिति से अवगत करवाया और वो समझ भी गया।
ये तो केवल मेरी दूकान के कारीगरों की हालत है और न जाने कितने जनक , चेतन इस समस्या से दो -चार हो रहे होंगे !! सोचता हूँ तो रूह कांप उठती है , आँखे भर आती हैं। आकाश की बुलंदी से जब कोई धरती पर गिरता है तो चोट तो लगती ही है। आज आसमाँ रो रहा है अलका , कोई रास्ता हो तो बताओ। अजी घबराने से थोड़े ही काम चलता है , कहते हैं की जब एक रास्ता बंद हो तो ईश्वर दूसरा रास्ता खोल देता है , विचार करते हैं , मिल-बैठकर कोई तरकीब निकालते हैं। वैसे जिसके हाथ में हुनर है वो दाल -रोटी का गुजारा तो कर ही सकता है।

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दुनिया परिवर्तनशील है , उसी तरह से काम-धंधे भी। जब किराना और सब्जी बेचने का काम online हो सकता है , पढाई online हो सकती है तो सिलाई के काम का भी कोई विकल्प ढूंढ़ना होगा। तय किया गया कि प्रीतम और उसके कारीगर फिर से एक होंगे और अपने कपड़ों का एक brand तैयार करेंगे। सरकार से आर्थिक मदद और उचित प्रशिक्षण के लिए आवेदन किया जायेगा , उसके लिए अपने क्षेत्र के विधायक को विश्वास में लेकर सरकार तक अपनी बात पहुंचाई जायेगी। मिलजुल कर काम करने से इस समस्या का समाधान हो पायेगा। सभी इस विचार से सहमत थे अतः विचार को अंजाम देने के लिए कमर कस ली गयी। सरकार तक आवेदन पहुंचा। प्रशिक्षण की व्यवस्था हुई, यही नहीं प्रशिक्षण के दौरान ही कारीगरों को प्रति माह घर खर्च के लिए पैसे भी दिए गए। छः माह की ट्रेनिंग के बाद प्रीतम-टीम ने अपना ब्रांड बाजार में शुरू कर दिया। अब कोई मालिक या नौकर नहीं था सब बराबर के हिस्सेदार थे। इसलिए हर कोई मन लगाकर काम करता था। बिक्री के लिए जगह-जगह अम्ब्रेला -सेल काउंटर लगाए गए। कॉलोनी , हाउसिंग सोसाइटी को सेल टारगेट रखा गया। 


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ई -कॉमर्स -कम्पनीज -इन -इंडिया 
अब कपड़े online बिक रहे हैं।   कुछ ही महीनो में ब्रांड स्थापित हो गया और बिक्री बढ़ने लगी। amazon , flipcart , snapdeal जैसी कंपनियों से भी संपर्क किया जा रहा है।  सिलाई के लिए अख़बारों में विज्ञापन दिए गए। अब ग्राहक को दुकान पर आकर कपड़े देने और नाप देने की जरूरत नहीं है , कारीगर स्वयं ग्राहक के पास जाते हैं और सिलाई करके कपडे वापस दे आते हैं। चूँकि बाज़ार में हर केटेगरी के ग्राहक हैं अतः ग्रामीण और मध्यम -वर्गीय परिवार की जरूरतों के हिसाब से उनके कपड़े चल निकले , सभी बहुत खुश थे। अब आसमाँ की आँखों में भी चमक थी। 

ग्लोबलाइजेशन, उदारीकरण , नोट-बंदी , GST  सरकार की सोच अर्थव्यवस्था के कुछ घटकों के लिए ही लाभकारी सिद्ध हुई हैं, कारण उन पर पूरा होमवर्क नहीं किया गया। और नौकरशाहों को पिसती जनता की बदहाली से कोई सरोकार नहीं होता है। नतीजतन , लाखों लोग बेरोजगार जरूर हो जाते हैं। लेकिन जो बदलती परिस्तिथियों के साथ बदलना जानते हैं , हिम्मत नहीं हारते हैं , वे पुनः अपने पैरों पर खड़े हो जाते हैं। 

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