वरदान और श्राप : Boon and curse - ज़िन्दगी के अनुभव पर Blog : Blog on Life experience

शनिवार, 27 जुलाई 2019

वरदान और श्राप : Boon and curse

             "वरदान और श्राप "  : Boon and curse

                      वरदान और श्राप देना संभव है। पर वैसा नहीं जैसा हमने  पुराणों में पढ़ रखा है, या पौराणिक कथाओं में सुन रखा है कि – ” जाओ, तुम्हें कोई नहीं मार सकेगा, तुम अमर हो गए हो।” सृष्टि के नियम के विरुद्ध ऐसे  वरदान गलत हैं। ऐसे वरदान नहीं होते हैं और न श्राप होता है। सृष्टि नियम के अनुकूल वरदान भी होता है और श्राप भी होता है। आशीर्वाद का नाम वरदान हैं। ” यह वरदान है कि – ”जो बड़ों का आदर सम्मान करते हैं, माता-पिता को, गुरुजनों को नमस्ते करते हैं, उनके आदेश का पालन करते हैं, उनकी सेवा करते हैं, उनकी चार चीजें बढ़ती हैं। वे हैं – आयु, विद्या, यश और बल।” माता-पिता उनको आशीर्वाद देते हैं, गुरुजन आशीर्वाद देते हैं कि बड़ी उम्र वाले हो, खूब फलो-फूलो, आगे बढ़ो, उन्नति  करो, सुखी रहो। ऐसा वरदान ठीक है। और अनुभव रहा है कि परिणाम सकारात्मक होतें हैं। 



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वरदान और श्राप 
श्राप क्या है? एक व्यक्ति ने अपराध किया और उसको कहा गया -  "देख, तूने अपराध किया है, तुझे दंड मिलेगा। तुझे  जेल में डाल दिया जाएगा "। अब फिर वह बाद में पकड़ा भी गया, उस पर केस चला और उसको जेल भी हो गयी। उसका श्राप सिद्ध हो गया। उसने सच बात कही। अपराधी को अपराध से बचाने के लिए अथवा उसको समझाने के लिए व्यक्ति उसको डाँटता है, रोकता है। फिर भी वह नहीं मानता है तो फिर उसको कहता है कि – देख तू नहीं मानता, तुझे दंड मिलेगा। और ऐसा ही होता है। 

 "वरदान और श्राप "  : Boon and curse

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वरदान और श्राप 
कुछ काल्पनिक श्राप ऐसे भी बोले जाते हैं। एक मनुष्य था, वह गड़बड़ यानी बुरे काम करता था, उसको श्राप दिया – तू अभी-अभी यहाँ पर सुअर बन जा, तू अभी-अभी इसी जन्म में कुत्ता बन जा। ऐसा संभव नहीं होगा। व्यक्ति इसी जन्म में तो कुत्ता नहीं बन सकता। हाँ, मरने के बाद हो सकता है कि वह बन भी जाए। सर्वोच्च -सत्ता  उसको कर्म के अनुसार दंड भी देदे , वो अलग बात है, पर जीते जी इसी जन्म में उसको तोड़-मरोड़ कर बिल्ली, कुत्ता नहीं बनाया जा सकता। अगर ऐसा हो सकता तो आज के इस विज्ञान-युग ने अपनी मर्जी से किसी भी इंसान को जानवर और जानवर को इंसान बना दिया होता। इंसान अभी तक केवल रोबोट ही बना पाया है , लेकिन वो स्वतंत्र नहीं हैं। इस तरह के कोई श्राप आपने कथाओं में सुने हों तो वो गलत हैं। 

                              परन्तु "बद्दुआ " किसी के दिल से निकली वो आह है , वो दर्द है जिसका परिणाम भोगने वाले के लिए बेहद कष्ट भरा है। 

कहानी डॉक्टर राजीव है। आज राजीव पिछले 14  महीने से घर में अपने बिस्तर पर पड़ा है।  एक पैर व एक आँख जाती रही- उस दुर्घटना में जब- उसकी कार एक बस से टकरा गई थी।  माँ , पत्नी,नर्स  सेवा में लगे रहतें हैं , मगर लाचारी इतनी है कि  बिना किसी की मदद के वो खाना भी नहीं खा सकता। एक डॉक्टर होते हुए भी वो अपना इलाज़ स्वयं नहीं कर सकता।शहर के नामी डॉक्टर से उसका इलाज़ चल रहा है।  पैसा पानी की तरह बह रहा है।

पिछले 5 वर्ष से उसका क्लिनिक अच्छा चल रहा था। मरीज़ों की भीड़ लगी रहती थी उसके क्लिनिक पर।  आमंदनी भी बहुत अच्छी होती थी। दो से तीन लाख प्रति माह की आमंदनी थी लगभग।  

परन्तु एक दिन उसके क्लिनिक पर पुलिस का छापा पड़ा, "आरोप लगा कि क्लिनिक में भ्रूण -लिंग परिक्षण का काला  कारनामा काफी जोर -शोर से चल रहा था "| केस दर्ज हुआ , मामला अदालत तक पहुँचा। चूँकि , पैसा बहुत था , अतः पुलिस और वकीलों पर अनाप -शनाप पैसा बहाया गया।  परेशानियाँ शुरू हो गईं।  रोज थाने के चक्कर , अदालत में सुनवाई। समय व पैसा दोनों बर्बाद हो रहे थे।  बदनाम हो जाने कि वजह से क्लिनिक में भी मरीजों का आना कम  हो गया था। अन्य डॉक्टर्स व नर्स उसके क्लिनिक को जैसे -तैसे खींच रहे थे। 

अदालतों का कड़वा सच तो यह है कि गंभीर से गंभीर अपराध करो परन्तु "मुचलका " व "जमानत रकम" भरो  और छूट जाओ। राजीव भी जमानत पर बाहर था। परन्तु उसका जीवन अपंगता से झूझ रहा था। 
                            यहीं पर दिमाग़ सोचने पर मजबूर हो जाता है कि उसके साथ ऐसा क्यों हुआ , उसका एक्सीडेंट क्यों हुआ ? क्यूँ वह अपंग हुआ ? क्या मानवीय गलती से ? या फिर उन मृत भ्रूणों की बद्दुआ से !!!!! 


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वरदान और श्राप 





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अपराध करके कानून से बचना संभव है पर क्या किसी की बद्दुआ से बचा जा सकता है!! शायद , नहीं।   





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