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रविवार, 29 सितंबर 2019

नवरात्रा -स्थापना

नवरात्रा -स्थापना

ब्रह्मा , विष्णु , महेश कौन हैं ? क्या इनका कभी जन्म हुआ था ? क्या इनकी मृत्यु हुई थी ? आज -कल वे कहाँ हैं ? यदि हैं तो दिखाई क्यों नहीं देते ? हिन्दू ही इन्हे क्यों मानते हैं ? क्यों इनकी पूजा करते हैं ? अन्य धर्म मतावलम्बी इन्हे क्यों नहीं मानते ? ऐसे बहुत से प्रश्न मन में बारम्बार उठते हैं। परन्तु उत्तर नहीं मिलते। और यदि मिलते भी हैं तो संतुष्टि नहीं होती !!


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ब्रह्मा -विष्णु -महेश 
मुझे अच्छी तरह से याद है दिनांक 7 जून 2018 को मैंने "Internet " पर सर्च किया था, "ब्रह्मा , विष्णु , महेश ". उद्देश्य था इन भगवानों की आकृति से सभी रिश्तेदारों व मित्रों को WhatsApp पर नमस्कार करूँ। तब ही Google-search में एक लिंक Heading में लिखा आया , "Who is father of Brahma,Vishnu and Mahesh "? विश्वास मानिये उस लिंक को खोलने और पढ़ने पर जो संतुष्टि मुझे हुई उसका वर्णन नहीं कर सकता। और उससे भी ज्यादा आश्चर्य कि बात यह है की वो लिंक अब उपलब्ध नहीं हो पा रहा है। पिछले 15 दिनों से प्रयासरत हूँ , लेकिन Google Search Engine में सर्च में नहीं आ पाता !! और जो उत्तर प्राप्त हो रहा  है उससे संतुष्टि नहीं हो रही। 

ब्रह्मा , विष्णु , महेश 

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ॐ परमब्रह्म 
"Who is father of Brahma, Vishnu, Mahesh" इस हैडिंग में सारी बात अंग्रेजी में समझाई गयी थी। जो इस प्रकार है :-
[1] "There are some sectarianism influenced fake stories about birth and death, later added into "PURANAS" by extremists of favoritism to degrade other superior Gods and to upgrade favorite superior God over other superior Gods."
अर्थात : "कुछ सम्प्रदायवाद हैं जो जन्म और मृत्यु के बारे में नकली कहानिओं को प्रभावित करते हैं , बाद में "पुराणों " में पक्षपातवाद अतिवादिओं द्वारा अन्य श्रेष्ठ देवताओं को नीचा दिखाने और अपने अन्य श्रेष्ठ देवताओं पर पसंदीदा श्रेष्ठ भगवान को उच्च करने के लिए जोड़ा गया। "
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[2] "Brahma, Vishnu, Mahesh are unborn and immortal. They are 3 expansions of "AADIBHAGWAN -PARAMPURUSH" [  ] . The male expansion of gender-less Parabrahman       [ ॐ ]. And Saraswati, Lakshmi, Parvati are 3 expansions of Aadibhagwati Paramshakti [ श्री ] the female expansion of gender-less Parabrahman { ॐ }"
अर्थात : "ब्रह्मा , विष्णु और महेश अजन्मे और अमर हैं। वे आदिभगवान परमपुरुष [ 卐 ] के 3 विस्तार हैं। ये लिंग -रहित परमब्रह्म [ ॐ ] के पुरुष विस्तार हैं। और सरस्वती , लक्ष्मी , पार्वती आदिभगवती परमशक्ति       
[ श्री ]  के 3 विस्तार हैं जो लिंग-रहित परमब्रह्म { ॐ } के स्त्री विस्तार हैं।
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[3] Parampurush [  ] and Paramshakti [ श्री ] are male and female expansions of gender-less Parambrahmn [ ॐ ] . When they are split they are Parampurush [  ] and Paramshakti [ श्री ] . When they are merged they are Parambrahm [ ॐ ]  [formless, gender-less Supreme being]
अर्थात : परमपुरुष  ] और परमशक्ति [ श्री ]; परमब्रह्म [ ॐ ] के लिंग -रहित पुरुष और स्त्री विस्तार हैं। जब परमब्रह्म [ ॐ ] को अलग किया जाता है तब वह परमपुरुष [  ]  और परमशक्ति [ श्री ] हैं। और जब उनको मिला दिया जाता  तब वे परमब्रह्म [ ॐ ] हैं, [ निराकार , लिंग -रहित परमात्मा ]
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[4 ] Combined form of Brahma, Vishnu, Mahesh is "Trimurti Datta" and combined form of Saraswati, Laxmi, Parvati is "Trishakti Durga."
अर्थात : ब्रम्हा , विष्णु ,महेश का संयुक्त रूप "त्रिमूर्ति दत्ता " है और सरस्वती , लक्ष्मी , पार्वती का संयुक्त रूप "त्रिशक्ति दुर्गा " है।
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[5 ] Hinduism is neither monotheism [एकेश्वरवाद ] nor polytheism [बहुदेववाद ] but a henotheism* [एकैकाधिदेववाद ] i.e. worshiping supreme being Parambramh [परमब्रह्म ] along with three expansions. * HENOTHEISM:- Worship of single God while not denying the existence of other deities.
अर्थात : हिंदुत्व न तो एकेश्वरवाद और न ही बहुदेववाद अपितु एकैकाधिदेववाद है। अर्थात परमब्रह्म की उसके तीनो विस्तार के साथ पूजा करना है। *हिनोतिस्म :- एक ईश्वर की पूजा करना लेकिन अन्य देवी -देवताओं के अस्तित्व को भी न नकारना।
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उपरोक्त व्याख्या से मुझे इतना तो स्पष्ट हुआ है की संसार को चलाने वाली एक "परमशक्ति " है जो निराकार, अनंत और अजन्मी है। हो सकता है कुछ विद्वानों ने कालांतर में इस परमशक्ति की विभिन्न शक्तियों [त्रिमूर्ति व त्रिशक्ति ] का वर्णन कहानियों के रूप में इसलिए गढ़ दिया गया हो, ताकि आम जन को समझ में आ जाए। और पूजा -पाठ के माध्यम से इन शक्तियों का ध्यान किया जाए।

नवरात्री -पूजा 

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नवरात्री -पूजा 
संभवतः , नवरात्री -स्थापना में भी परमब्रह्म की आदिभगवती परमशक्ति 
[ श्री ] के 9 रूपों की पूजा मानव -जाती के कल्याण के लिए की जाती है। वो 9 रूप निम्न हैं :-
  1. शैलपुत्री -शैल अर्थार्थ शिखर , सर्वोच्च। चेतना के सर्वोच्च स्थान पर पहुँचने के लिए आदिभगवती का ध्यान करना। 
  2. ब्रह्मचारणी - असीम , अनंत , सर्वव्यापक चेतना का ध्यान करना। 
  3. चन्द्रघंटा - चन्द्रमा जो मन का प्रतिक है। मन में हमेशा उतार -चढाव आते रहते हैं। घंटा जब बजाया जाता है तो एक सी ध्वनि सुनाई देती है। मन को एकाग्र कर ईश्वर के प्रति समर्पित हो जाना और एक अलौकिक शक्ति का उदय होना जिसमे एक ही ध्वनि सुनाई दे। 
  4. कूष्माण्डा - कूष का अर्थ है सूक्ष्म -शक्ति और अंडा का अर्थ है गोल ब्रह्माण्ड। सम्पूर्ण सृष्टि , ब्रह्मांड गोलाकार है।  और सृष्टि के हर कण में ऊर्जा और प्राणशक्ति का अनुभव करने के लिए ध्यान करना ही कूष्माण्डा है। 
  5. स्कंदमाता - स्कन्द का तात्पर्य ज्ञानशक्ति और कर्मशक्ति से है।  अपने उचित कर्म से व्यवहारिक ज्ञान प्राप्ति हेतु ध्यान करना ही स्कंदमाता स्तुति है। 
  6. कात्यायिनी - कात्यायिनी सूक्ष्म और अदृश्य संसार की सत्ता माँ को कहा गया है। वह क्रोध का भी प्रतीक है। प्रकृति को जब क्रोध आता है तो भूकंप , तूफ़ान, सुनामी , बाढ़ आदि विपदाएं आती हैं। और जीवों को कष्ट पहुंचाती हैं। उसी प्रकार से मनुष्य भी जब क्रोध में पागल हो जाता है तो अनर्थ कर बैठता है। उस क्रोध को नकारात्मकता से सकारात्मकता में परिवर्तित करने के लिए आदिशक्ति कात्यायिनी का ध्यान करना चाहिए। 
  7. कालरात्रि - काल का नाश करने वाली।  आदिशक्ति माँ का भयावह व उग्र रूप। जो ज्ञान और वैराग्य प्रदान करता है। 
  8. महागौरी - सौन्दर्य का प्रतीक। वह रूप जो सौन्दर्यमान व प्रकाशमान है। यह अलौकिकी एवं सूक्ष्म है। इसकी अनुभूति के लिए ध्यान करना व शून्यता में जाना चाहिए। 
  9. सिद्धिदात्री - सर्व -सिद्धि देने वाली। आप जो भी कार्य करें वो पूर्ण हो जाएं उसके लिए सर्वशक्तिशाली सत्ता का ध्यान करना। 
नवरात्री अर्थात 9 रातों तक आत्मा को विश्राम देना। मानसिक और शारीरिक पुनः ऊर्जा पैदा करना। जब हम दृश्य , सुगंध , स्वाद , श्रवण , स्पर्श से सम्बंधित इन्द्रियों [आंख , नासिका , जिव्हा ,कर्ण , त्वचा ] को विश्राम देते हैं और अंतर्मुखी होते हैं तब वास्तविक सुख , आनंद और उत्साह प्राप्त करते हैं।

नवरात्रि में उपवास :

उपवास करने से जठराग्नि प्रज्वलित होती है। जिससे शरीर में विषाक्त पदार्थ नष्ट हो जाते हैं। इन पदार्थों के निकलने से सुस्ती दूर हो जाती है। पेशियों में नव चैतन्य जागता है। शरीर शुद्ध होने से मन भी शांत और शुद्ध हो जाता है। इसलिए श्रद्धालु उपवास करते हैं। 


उपरोक्त सभी सूचनाएं संग्रहित की गई हैं , तथा यहाँ लिखने के पीछे उदेश्य यह है की हम हिन्दू रीति -रिवाजों / त्योहारों की वास्तविकता को गहराई से समझें। और यदि उसमे श्रद्धा जागृत हो तो उसका अनुसरण करें। केवल देखा -देखि करने से, जिसमे विश्वास कम और दिखावा अधिक हो, उसे  उपासना नहीं कहा जा सकता। जब तक एकाग्रचित होकर अथवा समूह में भी शांतिपूर्वक बैठकर , मन्त्रों के उच्चारण से पूर्ण श्रद्धा से अलौकिक शक्तिओं का आवाह्न न किया जाये , तब तक उस प्रयोजन की सफलता सदिंग्ध हैं। 

हम देख ही रहें हैं। देवी की हजारों मूर्तियां बन रही हैं। हर घर , गली , मोहल्ले , बाजार में देवी की पूजा शुरू हो गयी है। DJ [Disc Jockey] बज रहे हैं। गरबा नृत्य की धूम हो रही है। श्रद्धालु अपनी -अपनी हैसियत के हिसाब से "पंडाल " सजा रहे हैं। बंगाल में तो "करोड़ों " रुपए के पंडाल सजाये जाते हैं। लेकिन क्या उसमे कहीं  "ध्यान " समर्पित है ? क्या देवी के 9 रूप का वास्तविक अर्थ समझा जा रहा है ? 9 दिन की पूजा समाप्ति के पश्चात् उन मूर्तियों के विसर्जन किस तरह से होते हैं ??  आप और हम सभी देखते आ रहे हैं !!

हाँ , ये बात अलग है की त्योहारों के कारण बहुत सी दुकानें चल रही हैं। लोगों की रोजी -रोटी चल रही है। भारत में त्योहारों की अर्थव्यवस्था अरबों रुपए की है। 
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