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शनिवार, 21 दिसंबर 2019

मानव स्वभाव , Human Nature

मानव स्वभाव , Human Nature

रेल की पटरियाँ देखने में बिलकुल एक जैसी होती हैं फिर भी उनमे समान दूरी होती है और वे आपस में कभी नहीं मिलतीं। अगर उनकी लाइन भी बदलनी हो, तब भी समान दूरी तो बनी ही रहेगी। इन पटरिओं को बनाने वाले ने उनका आपस में  "ना " मिलना इसीलिए तय किया है की दुर्घटना टाली जा सके।


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रेल पटरी 
दो विचारधाराएँ भी पटरिओं के समान ही हैं जो साथ -साथ तो चलती हैं परन्तु आपस में कभी नहीं मिलतीं। प्राचीन काल से ही दो विचारधाराएँ प्रचलित हैं।  देव  और असुर  / अच्छा और बुरा / खट्टा और मीठा /  शालीनता और उदण्डता / मीठी और कड़वी बोली आदि।

प्रायः देखा गया है की  परिवार, समाज , संगठन  में भी सदस्यों के बीच वैचारिक मतभेद रहते हैं। अनेक अवसरों  पर अनुभव किया गया है कि कभी सास -बहु , पति -पत्नी , पिता -पुत्र , समाज  के विचार आपस में नहीं मिलते। इसका तात्पर्य यह हुआ की प्रकृति ने प्रारम्भ से ही समस्त जगत में भिन्नता का गठन किया है। क्यों ? ऐसा क्या है और क्यों है जो प्रकृति प्रत्येक जीव के सोचने , बोलने , चलने , शारीरिक बनावट , खाने आदि में अंतर पैदा कर देती है ?

सांख्य -शास्त्र के अनुसार प्रकृति के तीन तत्व सत , रज और तम गुण इसके लिए जिम्मेदार हैं। जिस व्यक्ति में सतो -गुण की प्रधानता होगी वो शांत व ईंमानदार होगा , जिसमे रजो -गुण की प्रधानता होगी वो चंचल और मेहनती होगा , जिसमे तमो-गुण की प्रधानता होगी वो आलसी,कपटी, झगड़ालू ,चोर स्वाभाव का होगा।  
 ज्योतिष -शास्त्र कहता है की जन्म के समय जातक के लग्न में "गृह" जिस राशि और नक्षत्र में उपस्थित होते हैं , उन ग्रहो व नक्षत्रों जैसा ही चरित्र, जन्म लेने वाली आत्मा का होता है। क्यूंकि राशि , गृह और नक्षत्र विभिन्न तत्वों का स्वामित्व लिए होते हैं। तो फिर ये नियम पशु , पक्षियों, कीट-पतंगों पर भी लागू होने चाहियें ! क्यों की वो भी जीव हैं , लेकिन ऐसा नहीं होता।  पशुओं की कुछ जातीआँ मांसाहारी हैं तो कुछ शाकाहारी तथा ये स्वभाव उनकी पीढ़ी में निरंतर चलता रहता है।  
लेकिन एक अपवाद जरूर है, यदि किसी मासाहारी पशु को जंगली वातावरण से अलग रखा जाए तो उसकी प्रवर्ति हिंसक न होकर सामान्य हो जाती है।  ऐसा ही व्यव्हार इंसान में भी देखा गया है की जब उसका लालन -पालन एक संभ्रांत , पढ़े -लिखे परिवार या समाज में होता है तो उसका स्वभाव शालीन होता है। इसका मतलब यह हुआ की किसी भी जीव का स्वभाव वातावरण से प्रभावित रहता है। ऐसा भी देखा गया है की कुछ वर्षों बाद इंसान का स्वभाव एकदम बदल जाता है , कोई एक ऐसी घटना घटती है जो उस इंसान का जीवन बदल देती है।  इसका मतलब ये हुआ की परिस्थितियां भी मनुष्य के स्वभाव को बदल सकती हैं।

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पुंसवन संस्कार 
तो क्या ये समझा जा सकता है की जन्म लेने वाले जीव का स्वभाव बहुत कुछ वातावरण और परिस्थितियों  पर निर्भर है। संभव है एक ही परिवार में जन्म लेने वाले दो इंसानों का स्वभाव इसीलिए अलग रहा हो !
जब बच्चा गर्भ में पल रहा हो तो माँ की मानसिकता बच्चे के स्वभाव पर अपना प्रभाव डालती हो। संभवतया इसी कारण से हिन्दू शास्त्रों में गर्भवती महिला के लिए "पुंसवन -संस्कार" [संतानोत्पत्ति -संस्कार] का प्रावधान बताया गया है। इस संस्कार के अंतर्गत गर्भ ठहर जाने पर माता के आहार , आचार , व्यवहार , चिंतन , भाव सभी को उत्तम  बनाने का प्रयास किया जाता है। "गर्भ " के तीसरे महीने में विधिवत पुंसवन -संस्कार कराया जाता है क्यूंकि इस समय तक गर्भस्थ  शिशु के विचार तंत्र का विकास प्रारंभ हो जाता है। वेद मन्त्रों , यज्ञीय वातावरण , एवं संस्कार सूत्रों की प्रेरणाओं से शिशु के मानस पर श्रेठ प्रभाव पड़ता है। [विकिपीडिआ से लिया गया ] 
निष्कर्ष ये निकलता है की भाव यदि उत्तम हों तो स्वभाव भी उत्तम हो  सकते हैं। 


यह भी सुनने में आता है की खान -पान का भी असर स्वभाव पर पड़ता है। "जैसा खाओ अन्न , वैसा होगा मन " बहुदा देखा गया है की मांसाहारी जीव की प्रकृति हिंसक होती है।  जो इंसान मांस खाते हैं ,उनकी वाणी भारी होती है और प्रवृति हिंसक । इसका तात्पर्य यह हुआ की खानपान भी किसी व्यक्ति के स्वभाव को प्रभावित करता है।

एडम और ईव  में ज्यादातर  कन्याएँ शांत , शालीन होती हैं और बालक उनके विपरीत। लेकिन कभी-कभी यह स्वभाव विपरीत भी होता है।  उनके स्वभाव में ऐसा अंतर क्यों ? प्राकृतिक रूप से पुरुष के शरीर का गठन महिलाओं की अपेक्षा अधिक सुदृढ़ होता है। क्या इसका अर्थ यह है की जहाँ सुदृढ़ता होगी वहां कठोरता भी होगी और व्यवहार भी कठोर होगा । "पौधे कोमल तो पेड़ कठोर",  शायद इसीलिए होते  हैं। इसका तात्पर्य यह हुआ की जैसे -जैसे जीव / पेड़ -पौधों की उम्र बढ़ती है वैसे -वैसे उनका स्वभाव बदलता रहता है।

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मानव स्वभाव 
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मानव स्वभाव 













शारीरिक विकास के साथ जीव -आत्मा की परिपक्वता महसूस की जाती है। एक बालक / बालिका में सोचने-समझने की उतनी शक्ति नहीं दिखती जितनी की एक परिपक्व पुरुष / महिला में दिखती है ! "आत्मबल" को मजबूत बनाने से भय दूर हो जाता है और इंसान को उचित -अनुचित में भेद करना अच्छी तरह से आ जाता है। ऐसा सुना जाता है और बहुत से लोगों में देखा भी जाता है ! महात्मा बुद्ध , महात्मा गाँधी , शिरडी के साई आदि अनेक ऐसे उदाहरण हैं जिनका आत्मबल बहुत मजबूत था। 

सुख, शांति, प्रेम, आनंद , ज्ञान , शक्ति व  पवित्रता ये सात गुण  आत्मा के बताये गए हैं।  तो ईर्ष्या , द्धेष , घृणा, कुटिलता, डर, क्रूरता  आदि  किसके अवगुण हैं ? सुनते  हैं सारे भाव  "मन " के अधीन होते  हैं और "मन ' आत्मा का प्रतिनिधि माना जाता है। आत्मा के अंदर अलग -अलग भाव पैदा होने के क्या कारण  हैं ? आत्मा का आचरण भी संभवतः वातावरण पर निर्भर करता होगा !

बहुत विचार करने के बाद अभी तक इतना समझ में आया  है की "मानव का स्वभाव " वातावरण, खान-पान, संगत और संस्कार  से प्रभावित रहता है। कठोर चिंतन से स्वभाव को परिवर्तित भी किया जा सकता है। आपके क्या विचार हैं , कृपया प्रेषित करें।

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