अरेंज्ड v/s लव मैरिज : Arranged v/s Love Marriage - ज़िन्दगी के अनुभव पर Blog : Blog on Life experience

सोमवार, 30 दिसंबर 2019

अरेंज्ड v/s लव मैरिज : Arranged v/s Love Marriage

अरेंज्ड v/s लव मैरिज : Arranged v/s Love Marriage

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लव-मैरिज 
नागर जी अपने बेटे "शरद " की शादी के लिए बहुत हाथ -पाँव मार रहे थे। कोई अच्छा रिश्ता ही नहीं मिल रहा था।  रिश्तेदारों , अख़बारों , शादिओं की websites , विवाह -मिलन समारोह सभी जगह प्रयास जारी था। परन्तु अच्छी लड़की नहीं मिल रही थी। दूसरी ओर उनके मित्र मनोहर जी के पुत्र "अरुण" का विवाह तुरंत ही हो गया था। अरुण जिस कंपनी में काम करता था उसी कंपनी में साथ में काम कर रही श्वेता ने एक-दुसरे को पसंद किया और दोनों परिवारों की रजामंदी से विवाह हो गया।

इसलिए नागर जी को खलबली कुछ ज्यादा ही थी। ख़ैर .........5-6 महीने की मशक्कत के बाद एक जगह बात तय हो गई। नागरजी का बेटा शरद एक बड़ी कम्पनी में इंजीनियर था अतः लड़की भी इंजीनियर ही ढूंढ रहे थे , जो संयोग से मिल  गयी। कुंडली में भी 28 गुण सही पाए गए।  शुभ-मुहूर्त देखकर धूमधाम से शादी हो गयी। नागरजी रिटायर्ड हो चुके थे अतः वह अपने पुश्तैनी मकान में ही रहते थे। परन्तु उनके बेटे का जॉब दूसरे  शहर में था अतः शादी के बाद बहु को भी बेटे के साथ शहर में रहना था। शादी के पश्चात् की  रस्में निभाने के बाद बहु-बेटे शहर चले गए। जैसा की आमतौर पर होता है शुरुआत के 6-8 महीने अच्छी तरह से बीते।

लेकिन कुछ समय बाद शरद और उसकी पत्नी के संबंधों में खटास आने लगी। नागरजी को यह बात मालूम हुई तो वो सोच में पढ़ गए की, "सास-ससुर साथ नहीं रहते फिर भी दोनों में अन-बन क्यों ?"  उन्होंने दोनों को बुलाया और मन -मुटाव जानने का प्रयास किया। बहु ने बताया की जॉब  करके आने के बाद वो इतना थक जाती है की घर पर आकर खाना बनाने की उसकी हिम्मत नहीं होती, और ये हैं इसी बात पर मुँह बना लेते हैं।  "हाँ तो सही है न पापा, रोज-रोज  होटल का खाना कौन खायेगा", शरद ने बीच में टोका। "और फिर आप भी तो कभी-कभी इतना लेट आते हो और मुझे टाइम ही नहीं देते हो" , इस बार बहु बोली। नागरजी ने समझाया की बेटा , "विवाहित जीवन सामंजस्य से चलता है" , तुम दोनों  को एक-दूसरे  की मदद करनी चाहिए। शरद तुम्हें  भी खाना बनाने में बहु का सहयोग करना चाहिए। " क्या पापा आप भी, मेरा क्या यही काम रह गया है ? शरद बोला.

फिर भी किसी तरह से समझा-बुझा कर नागर जी ने दोनों को विदा किया। 5-6 महीने ठीक गुजरे , लेकिन फिर तकरार शुरू हो गयी। बहु ने अपने पापा को फोन करके बताया की अब वो शरद के साथ नहीं रह सकती। पापा ने नागर जी से बात करी तो उन्होंने भी अपनी बात रखी कि, "पिता होने के नाते उन्होंने भी दोनों को समझाया है , लेकिन लगता है दोनों समझना नहीं चाहते"। क्या बताएं आज-कल के बच्चों के बारे में , उनका दुनिया को देखने का नज़रिआ ही अलग है। मैं सोचता हूँ की, "बिटिया का जॉब छुड़वा देते हैं , तो वो घर की देखभाल भी ठीक से कर लेगी और शरद को समय भी दे पाएगी "। इस बात पर बहु के पिता सहमत नहीं हुए , बोले "क्यों साहब, बहु को इंजीनियरिंग घर सँभालने के करवाई है क्या ?" घर सँभालने की जितनी जिम्मेदारी मेरी बेटी की उससे ज्यादा शरद की है। वो जॉब नहीं छोड़ेगी , आखिर इतना पैसा खर्च करके हमने उसे अपने पैरों पर खड़ा होना  सिखाया है। ये खाना -बनाना , कपडे धोना , झाड़ू -पोछे के लिए जब बाइयाँ उपलब्ध हैं तो कहाँ दिक्कत है ? आज के समय में शादी करने का मतलब यह नहीं है की बहु चूल्हे -चोके में लगी रहे और पति के हर हुक्म को सिर -माथे पर रखे। बहस चलती रही और परिणाम बेनतीजा रहा। शरद और उसकी पत्नी एडजस्ट करने के लिए तैयार नहीं थे। उसकी पत्नी का सैलरी पैकेज भी अच्छा था , अतः उसने अलग रहने का फैसला कर लिया।

अरेंज्ड v/s लव मैरिज : कौन बेहतर 

उधर दूसरी तरफ नागरजी के दोस्त मनोहर जी के घर का हाल भी ज्यादा अच्छा नहीं था। चूँकि उनका पुत्र अरुण व बहु श्वेता सभी संयुक्त परिवार में रहते थे, अतः बर्तन खनकने की आवाज़ें आती रहती थी।  श्वेता को अपने सास-ससुर से शिकायतें रहने लगी। सास-ससुर बच्चा चाहते थे पर बहु-बेटे अभी बच्चा नहीं चाहते थे। उसके लिए भी बहु पर दबाब ज्यादा था।  जब वो अपनी परेशानियां अरुण को बताती तो अरुण उन पर ज्यादा ध्यान नहीं देता , सिर्फ इतना कहता की  "एडजस्ट करो ". आखिर कितना एडजस्ट करूँ और मैं ही क्यों एडजस्ट करूँ, वो लोग क्यों नहीं। ऐसे विचार उसके दिमाग में खट -खट  करते रहते थे। श्वेता को संतुष्टि नहीं हुई और वो अपने माँ-बाप के पास चली गई।

अब दोनों ही घरों में बहुएँ नहीं थीं। जबकि एक अरेंज्ड तो दूसरी लव -मैरिज थी। अक्सर हम लोगों से चर्चा करते हैं की "Love -Marriage " सही है या "Arranged -Marriage ". और चर्चा में सुनते हैं की लव-मैरिज ज्यादा ठीक हैं, इसमें लड़का-लड़की एक-दुसरे को अच्छी तरह से जान लेते हैं , समझ लेते हैं , और सुखी जीवन जीते हैं।

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Arranged-marriage

 दूसरी ओर सुनते हैं, तो पाते हैं की, अरेंज्ड-मैरिज की सिफारिश करने वाले भी कम नहीं।  वे कहते हैं की ये दो बच्चों का नहीं , दो परिवारों का जुड़ने का तरीका है। और साथ ही बच्चो पर बड़ों का हमेशा आशीर्वाद बना रहता है। लेकिन फिर भी दोनों तरह की शादिओं में भविष्य में पति-पत्नी और परिवारों के संबंधों में खटास आनी शुरू हो जाती है।
 क्यों ???????????? 

कारण बहुत हैं। दरअसल, लव-मैरिज आकर्षण व प्रेम की परिणीति होती है जिसमे भविष्य में बनने वाले संबंधों और जटिलताओं पर गहराई से विचार नहीं किया जाता। बच्चे रिश्ते की बारीकियों को ठीक से नहीं समझते और न समझना चाहते।
दूसरे, शादी के तुरंत बाद समाज की मान्यता मिल जाने के बाद लड़के और लड़की का मानसिक स्तर बदल जाता है क्यूंकि अब उन्हें मिलने का डर नहीं रहता।
तीसरे, लड़का और लड़की यदि दोनों ही जॉब में हैं तो Ego टकराने शुरू हो जाते हैं।
चौथे, पराये घर जाकर लड़की तुरंत ही अपने आप को एडजस्ट नहीं कर पाती। 
पांचवे , पति और उसके माता-पिता की हुकूमत उससे बर्दाश्त नहीं होती।
छठे , लड़की यदि पढ़ी -लिखी है तो दासी का जीवन जीना उसके स्वभाव में कतई नहीं है। वो अपने स्वाभिमान व स्वतंत्रता से समझौता नहीं  करना चाहती।

अरेंज्ड-मैरिज असफल होने के प्रमुख कारण हैं :- दोनों परिवारों में परम्पराओं की भिन्नता।  परिवार एक ही समाज के लेकिन फिर भी भिन्नता आम बात है। अर्थात वैचारिक मतभेद। और यदि परिवार अलग-अलग समाज से हैं [Inter-cast ] तो ये भिन्नता और भी अधिक हो सकती है।
दूसरे, लड़का-लड़की के स्वभाव की अनभिज्ञता। बच्चो के स्वभाव की जानकारी की बात जो भी माँ-बाप करते हैं वो अधूरी होती है।
तीसरे धोखा, लड़का या लड़की की जो शैक्छणिक योग्यता या जॉब  की बात शादी  से पहले बताई जाती है वो बाद में झूट निकलती है या बच्चो में किसी बिमारी को छिपाना जो बाद में पता चलती है और सम्बन्ध कड़वे बनाती है ।
चौथे , जो सबसे महत्वपूर्ण है वो सास-बहु का रिश्ता है। जिसमे सास हमेशा बहु पर हावी रहने की कोशिश करती है और बहु से संबंधों में खटास बढ़ती चली जाती है।
पांचवां , शादी में रह गई कमियों के लिए ताना मारना। प्रारम्भ में मिलजुल कर विवाह निपटाने की बात होती है , लेकिन जैसे-जैसे शादी परवान चढ़ती है जिम्मेदारिआं एक -दूसरे पर मढ़ दी जाती हैं। आदर्श बातें तो होती हैं , लेकिन यथार्थ से टकराने के बाद सब गायब हो जाती हैं।

अरेंज्ड v/s लव मैरिज : क्या जाने !

शादी एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। और बड़ी जिम्मेदारिआं उठाना कोई आसान काम नहीं होता। शादी के बाद सम्बन्ध बिगड़ जाने के बाद दोनों पक्ष तनावग्रस्त रहते हैं। तो फिर एक आदर्श -विवाह कैसे हो ? जिसकी मिसाल समाज देता रहे। कुछ विचारणीय बिंदु निम्न हो सकते हैं :-

1. शादी से पहले दोनों परिवार एक -दूसरे का  इतिहास जरूर जाने। कठिन है परन्तु असंभव नहीं। दोनों पक्ष खुलकर कहें की ये जानकारी जरूरी है और दोनों उसे अन्यथा न लें। शादी के पश्चात् एक-दूसरे के परिवारों पर कीचड़ उछालने से बेहतर है पहले ही जानकारी ली जाए। बहुदा अरेंज्ड मैरिज में , रिश्ता तय करते समय दोनों परिवार के लोग ये कहते हैं , " लड़का-लड़की एक दूसरे को अच्छी तरह से समझ लें क्यूंकि ज़िन्दगी तो उन्हें बितानी है , हम तो केवल निमित्त मात्र हैं। " लेकिन , शादी हो जाने के बाद बच्चों की ज़िन्दगी में माँ -बाप का दखल कुछ ज्यादा ही बढ़ जाता है, विशेषकर दोनों बच्चो की माँ का। जो संबंधों में दरार लाने का काम करता है। इससे बचना चाहिए।

2. लड़का और लड़की दोनों जॉब में हैं तो उनके जॉब की सच्चाई  का पता लगाना चाहिए।  उनके education के सर्टिफिकेट्स देखना चाहिए।  हिचकिचाहट से न घबराना चाहिए , स्पष्ट कहना चाहिए की ये जरूरी है।

3. एक -दूसरे के रीती-रिवाज़ों का सम्मान जरूर करना चाहिए।  चाहे उनसे सहमत हों या न हों। पहले से ही इन  बातों पर सहमति बना लेनी चाहिए।

4. शादी से पहले ही लड़की को मानसिक रूप से यह स्वीकार करना चाहिए की उसे दूसरे  घर जाना है तो रिश्तों को भी निभाना है। कमियाँ /खामिआं सभी में होती हैं उनको नज़रअंदाज़ करना सीखना होगा। परिवार में एडजस्ट होने का सबसे उत्तम उदाहरण "सोनिया गाँधी " हैं जो "इटली " से आयी और भारतीय बन कर रह गईं।  YouTube पर उनका इंटरव्यू सुनने लायक है।    https://www.youtube.com/watch?v=PsJdrSVG004

5. लड़के को भी यह समझना होगा की जिससे उसकी शादी हुई है वो भी इंसान है उसे अपनी ज़िन्दगी जीने            का पूरा हक़ है। उसे  हर समय अपने हिसाब से चलने / चलाने के विचार पर नियंत्रण रखना सीखना होगा।          Bollywood और बड़े लोगों के रहन-सहन के आकर्षण से बचना चाहिए। 

6. प्रेम यदि आकर्षण से है तो झूट है , अल्पकालीन है ! क्यूंकि प्रेम "त्याग" का नाम है !!

7. लड़की देखने में सूंदर है , पढ़ी- लिखी है , जॉब वाली है और क्या चाहिए से भी आगे सोचना होगा। वो ये              की लड़की को अपने घर में वो वातावरण देने चाहिए जो वो अपने माँ-बाप के यहाँ पाती है। उसकी हर                  भावना की कद्र  करनी चाहिए। उसे कुछ भी कहने से पहले सोचने की आदत डालनी होगी। और कहने                का तरीका भी प्यार भरा  हो तो सोने पे सुहागा।  प्यार से तो जानवर भी दोस्त बन जाते हैं।

8. लड़के और लड़की दोनों की मम्मीओं को उन्हें सोच -समझकर ही सलाह देनी चाहिए।

9 . विवाहोपरांत अलगाव की स्थिति में इधर -उधर भटकने से बेहतर है कि आपस में बैठकर उसका समाधान          निकाला जाए।  Ego बड़ी समस्या है उसे छोड़ा जाए।

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