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गुरुवार, 9 सितंबर 2021

सच्चा - सहारा ; True- Support

सच्चा - सहारा ; True- Support

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सहारा ; Support 


RIP [Rest in peace] मतलब मृतक की आत्मा को शांति प्रदान हो। बहुदा ऐसे सन्देश हम WhatsApp , Telegram , Twitter , Facebook आदि सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर देखते रहते हैं, जब किसी परिचित के घर के सदस्य की मृत्यु हो जाती है, हम अपनी संवेदनाएं प्रेषित करते रहते हैं। मृतक के परिजनों को सांत्वना देते हैं और हिम्मत रखने के लिए कहते हैं। कुछ परिवार इस सदमे को सहन कर लेते हैं तो कुछ बिलकुल टूट जाते हैं। विशेषकर वो परिवार जिसमे बच्चे छोटे हैं , माँ ग्रहणी है और घर के मुखिया की असमय मृत्यु हो जाए। 

घर कैसे चलेगा ????????? कोई कितना उधार देगा ??? कब तक चूका पाएंगे ? आदि -आदि सवाल मस्तिष्क में कौंधने लगते हैं। हताशा घेरने लगती है। जिनके घर में मृतक का जीवन -बीमा होता है उन्हें कुछ आर्थिक सहायता मिल जाती है। अन्यथा उधार लेने या घर के जेवर आदि बेचने की नौबत आ जाती है। 

कुछ ऐसा ही हादसा मेरे एक परिचित के साथ हुआ। उनका रेडीमेड कपड़े का व्यापार था। दूकान ठीक -ठाक चल रही थी , दाल -रोटी का खर्चा निकल रहा था। उनकी पत्नी सिलाई का काम करती थीं। बेटे ने ग्रेजुएशन कर लिया था लेकिन नौकरी नहीं मिल रही थी। अतः बेटा भी दुकान में पिता का हाथ बंटा रहा था। अचानक एक दिन मेरे परिचित की तबियत बिगड़ी, डॉक्टर को दिखाया तो पता चला की हार्ट -ब्लॉकेज है , साथ ही किडनी और लीवर भी ठीक काम नहीं कर रहे हैं। 

पत्नी और बेटा मेरे परिचित को जगह -जगह दिखाते रहे। कुछ डॉक्टर्स ने इलाज़ किया तो कुछ ने पैसे लूटे। लीवर के प्रॉपर काम न करने के कारण हार्ट  -ऑपरेशन भी नहीं हो रहा था। ज़िन्दगी धीरे-धीरे घिसट रही थी। कभी कुछ आराम हो जाता तो कभी तबियत फिर बिगड़ जाती। इसी तरह 8 महीने गुजर गए  और फिर एक दिन  हार्ट -अटैक से उनका देहांत हो गया। हँसता -खेलता  परिवार अचानक से शोक के भंवर में डूब गया। खबर मिलते ही पड़ोसी और रिश्तेदार आने लगे। जो मित्र और रिश्तेदार दूर रहते थे उनके सांत्वना सन्देश आने लगे। 


मैं भी अपनी संवेदनाएं प्रकट करने के लिए उनके घर गया। जब मैं उनकी पत्नी से मिला तो उनसे मैंने एक ही सवाल किया कि , "क्या ज़िन्दगी को आगे चलाने के लिए पैसे की व्यवस्था है "? इतना सुनकर वो फूट -फूट कर रोने लगी। फिर अपने आप को सँभालते हुए उन्होंने बताया , "क्या बतायूं भाई साहब जो  कुछ भी थोड़ी -बहुत बचत कर रखी थी वो तो इनके इलाज़ में खत्म हो गई ". ले दे के बस ये दुकान ही बची है जिससे फिलहाल दाल -रोटी ही चल सकती है।  लेकिन अभी मुझे अपने बेटे की शादी भी करनी है। उसमे खर्च करने के लिए मेरे पास कुछ नहीं बचा। मैंने कहा मित्र और रिश्तेदार कब काम आयेगें ? तब उन्होंने कहा की किसी से पैसे ले तो लो , लेकिन चुकाने की क्षमता भी तो होनी चाहिए। जो फिलहाल नज़र नहीं आती। रिश्तेदार / मित्र कुछ समय तो इंतज़ार करते हैं। लेकिन लम्बे इंतज़ार के बाद जब उन्हें अपने पैसे न मिले तो ताने देने लगते हैं। 


मैंने सोचा बात तो सही है। अचानक परिवार के मुखिया की मृत्यु हो जाए और बचत के नाम पर कुछ भी न हो , कोई जीवन-बीमा न हो , बच्चे छोटे और अविवाहित हों तो मुखिया की पत्नी की मन स्थिति क्या होती है , इसको हर कोई नहीं समझता। बस , शोक-सन्देश भेज दिए जाते हैं। ज्यादा से ज्यादा उनसे मिल आया जाता है। "हिम्मत रखो , सब ठीक हो जाएगा , कोई दिक्कत हो तो बताना " आदि बातें कही जाती हैं और ....................

 सहारा Support-

मैं भी सांत्वना देकर चला आया। फिर एक दिन "Crowd -funding " के बारे में पढ़ा। यूट्यूब पर वीडियो देखे जिसमे बताया गया की स्टार्टअप , बीमारी के इलाज़ और किसी भी उचित काम को करने के लिए "क्राउड -फंडिंग " की जा सकती है। यानी आम पब्लिक से पैसे लिए जा सकते हैं जिन्हे वापस नहीं करना पड़ता। 

तब मन में विचार आया की क्यों न उस महिला के लिए "क्राउड -फंडिंग " की जाए जिसके पति की हाल ही में मृत्यु हुई है और वो अपने आप को असहाय महसूस कर रही है। 

बस मैं उसके घर गया और उससे उसके रिश्तेदार और मित्रों की लिस्ट ली और अलग-अलग "सोशल -मीडिया " साइट्स Whatsapp, Facebook, Twitter and Instagram पर सभी से निवेदन किया की यदि हम मृतक के सच्चे हमदर्द हैं तो प्रति व्यक्ति कम से कम 2000 रुपए की आर्थिक मदद कर उसके परिवार की सहायता करें।  लगभग 100  लोगों को उस लिस्ट में शामिल किया। मृतक की पत्नी का बैंक अकाउंट नंबर , बैंक का नाम व् पता और IFSC Code लिखा  और महीने भर में ही उस अकाउंट में 1,50,000 रुपए जमा हो गए। अभी भी उस अकाउंट में आर्थिक -सहायता जारी  है। 

मैंने भी अपनी तरफ से 2500 रुपए की सहायता करि। मुझे बहुत संतुष्टि हुई। लगा की किसी जरूरतमंद को सच्चा सहारा दिया। अब उस महिला को पैसे वापस करने का तनाव भी नहीं होगा। उस परिवार के रिश्तेदारों / मित्रों को भी ये लगा होगा की रकम ज्यादा नहीं हैं , वापस भी नहीं आएगी तो चलेगा।  इससे ज्यादा पैसा तो हम रेस्टोरेंट में खाने , ब्रांडेड कपडे खरीदने , जन्मदिन या शादी की वर्षगांठ मनाने , मौज -मस्ती आदि में खर्च कर देते हैं। 

कभी किसी को सहायता करनी हो तो रास्ते बहुत हैं , मुख्य बात ये है की किसी को मुसीबत में देखकर हमारा दिल पिघलता है या नहीं !!! बहुत से NGOs या संगठन जो बेसहारों की सहायता करते हैं या बहुत से पूंजीपति जो दान करते हैं निश्चित रूप से उनके संचालक के भाव इंसानियत से लबरेज़ होंगे। 

सरकार की आर्थिक सहायता इसलिए जरूरतमंद तक नहीं पहुँच पाती क्यूंकि उनमे भावना कम और औपचारिकताएं बहुत होती हैं। महीनों क्या वर्षों लग जाते हैं !!! धिक्कार है नौकरशाही को। 

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