जरा संभल के ! A bit careful......
मुलाक़ात |
चंद घंटों की मुलाक़ात से कुछ नहीं होता , खूबियाँ और कमियाँ तो कुछ समय साथ रहने के बाद ही पता चलती हैं ! खूबसूरत मकान की कमियाँ उसमे कुछ समय बिताने के बाद ही पता चलती हैं !! दफ्तर की दुश्वारियाँ कुछ समय काम करने के बाद ही पता चलती हैं !!!
पहली मुलाक़ात में तो जुबाँ पर आदर और प्रेम ही छलकता है , दिल के अंदरूनी हिस्से में जो भावना और शब्द छुपे हैं , उनका पता तो "बरतने " के बाद ही पता चलता है !!
मकान की दीवारों की सीलन कितनी ज्यादा है या उसमे मिट्टी कितनी है , ये पलस्तर झड़ने पर ही पता चलता है !
बाबाओं के आश्रम में दुष्कर्म पहली मुलाक़ात में नहीं होते ! प्रथम समय तो त्याग , तपस्या की मूर्ति ही नज़र आती है , "भक्त " जब बन जाते हैं "दास ", तब फिर तपस्वी मूर्ति की असली तस्वीर उभरने लगती है।
किसी को "जज " करना आसान नहीं , चेहरे पर क्या और दिल में क्या , इसका तुरंत कोई प्रमाण नहीं !! नज़रें अगर नीची भी हों तो ये न समझना की भीतरी नज़र भी कोमल होगी।
पत्थर की लकीरें भी एक अरसे के बाद फ़ैल ही जाती हैं। दीये की रौशनी भी तेल ख़त्म हो जाने के बाद बुझ जाती है। "तुम्हें समझने में मैंने बहुत देर की ", ये बात कुछ समय के बाद ही कही जाती हैं।
खूबसूरत डिजाइन और रंगत को देखकर दिल ललचा गया। और यहीं पर वो गच्चा खा गया। पैसा भी खर्च किया , वाह -वाह भी लूटी। मगर चंद महीनों बाद ही उसने "दुल्हन " को लुटेरी बता दिया।
एक बात बता दूँ अपने लुटने की ! नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर एक बंदा मेरे पास आ के कहता है , "और कैसे हो ? मैंने कहा , "भाई पहचाना नहीं ". वो बोला, "अरे यार इतनी जल्दी भूल गए, याद नहीं तुम्हारे जीजाजी के यहाँ मिले थे ?" कितनी हँसी मजाक की थी। मैंने पुछा , "कौन से जीजाजी ? कोटा वाले या सूरत वाले ? वो बोला कोटा वाले , जो मेरे अच्छे मित्र हैं। अच्छा छोडो , ये बताओ कहाँ जा रहे हो ? मैं बोला अपने घर। अच्छा तभी इतना सामान ले जा रहे हो। देखूं तो इसमें क्या है ?
कुछ ही मिनटों में उसने मुझ पर अपना प्रभाव छोड़ दिया। ट्रैन के जाने के समय बोला , "यार ये अंगूठी तो बहुत अच्छी है , सोने की है ?" मैंने कहा , "हाँ ". अच्छा तो मैं ले लूँ। इससे पहले की मैं कुछ कहता उसने अंगूठी मेरी ऊँगली से उतार ली , इधर ट्रैन ने सीटी दी और चल पड़ी। मैं ये सोचता रहा की जीजाजी से कह कर वो अंगूठी वापस ले लूंगा।
जब जीजाजी को ये बात बताई , तो वो बोले , "धीरज नाम का तो कोई मेरा मित्र नहीं है " लगता है वो तुम्हे बेवकूफ बना कर सोने के अंगूठी ले गया। कैसे आदमी हो तुम , इतनी भी अक्ल नहीं की किसी अनजान आदमी से कैसे मिलें। मुर्ख कहीं का ....... लल्लू साला ............
फिर दूसरा अनुभव था , "दोस्ती उसने मुझमें काबलियत देखकर नहीं की थी। उसकी हिमाकत की भनक मुझे उस समय पता चली जब उसने मेरी बहन की खूबसूरती में कुछ कसीदे पढ़े। और मेरे घर आने के बहाने गढ़े" !!
हीरे की परख तो जौहरी भी नहीं कर पाता अगर हीरा "जीव की भावना" में पाया जाता।
शिकार को फँसाने के लिए जाल बिछाए जाते हैं। जिसमे साम , दाम , दंड और भेद सब आजमाये जाते हैं। बुराईयाँ और कमियाँ कुछ समय छुपाये जाते हैं। और मक़सद पूरा होते ही मुर्गे हलाल कर दिए जाते हैं !!
चाणक्य कहते " सीधा मत बन वरना एक दिन कट जायेगा। देख उन टेढ़े -मेढ़े पेड़ों को जो वर्षों खड़े ही रहते हैं और सीधे -लम्बे वृक्ष कुछ समय ही जीते हैं। "
विदुर भी कहते "छः प्रकार के व्यक्ति प्रायः पूर्व उपकार करने वालों को सदा हीन दृष्टि से देखते " :-
[१] आचार्य को पढ़े हुए शिष्य
[२] माता को विवाहित पुत्र
[३] अकामुक हो चुकी पत्नी को पुरुष
[४] प्रयोजन सिद्ध हो जाने पर स्वार्थी
[५] नाविक उस नाव को जिसने नदिया पार कराई हो
[६] रोगी उस चिकित्सक को जिसने उसका उपचार किया
टीम-वर्क तो केवल "स्लोगन " होते हैं , असल मक़सद तो अपने को ऊँचा कर, "उल्लू सीधा करना ही होता है "।
"शक़ " से देखें हर शक्स को ऐसा भी कुछ भाव नहीं , किसको समझें किसे न समझें, ऐसा भी कोई भान नहीं। कैसे खोजूं उसको मैं ? जो सत्य , प्रेम , मर्यादा हो , जो निस्वार्थ -भाव से हाथ मिलाने वाला हो। क्या ऐसा फूल बनू जिसमे काटों की चादर भी हो , छुए कोई तो चुभने का अहसास भी हो।
संभल के चलना , समझ के मिलना , ध्यान से सुनना। कभी किसी से मिलने में, किसी को अपनाने में जल्दबाजी कभी न करना !!
बहुत कठिन है मन के भावों की पहचान।
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