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शुक्रवार, 17 अप्रैल 2020

लॉकडाउन ; Lockdown

लॉकडाउन ; Lockdown 

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लॉकडाउन 
ज़िन्दगी के बेहद कड़वे अनुभव में शामिल रहा लॉकडाउन। अपनी उम्र के 59 वे वर्ष के पड़ाव में पहली बार सोशल लाइफ में दूरी , लोगों को न मिलने देने के लिए धारा 144 , कर्फ्यू , पुलिस के डंडे , गाड़ियां जब्त ,मास्क-चेहरा , इच्छाओं का दमन, शादिओं का स्थगन , पंडितों की बेरोजगारी , अन्य बेरोजगारी , आपातकालीन बीमारी में ही अस्पतालों में प्रवेश , online पढाई , काम  आदि  अनेकों नए अनुभवों का आलंगन करना पड़ा।

लॉकडाउन या लॉकउप !! पता नहीं अंग्रेजी का शब्द-ज्ञान !! डाउन का मतलब तो "नीचे " होता है और अप का मतलब "ऊपर "!! किसी कैदी को जब थाने में बंद कर देते हैं तो कहते हैं की वो "लॉकउप " में है। वैसे लॉक अगर डाउन है तो खुला हुआ होना चाहिए। हिंदी में तो एक ही शब्द है "तालाबंदी ". तथापि , लॉकडाउन का मतलब "अलगाव " या "प्रतिबन्ध " या "नियंत्रण "से है, जो किसी विशेष परिस्थिति में ही होता है । भारत में ये २२ मार्च २०२० से लागू किया गया था २१ दिन के लिए और पुनः ३ मई २०२० तक बढ़ा दिया गया। कोरोना की फिर नयी लहर ने २०२१ में अपना तांडव जारी रखा है। सरकारें  परेशान हैं , इंसान बेहाल है परन्तु जानवर , पक्षी अनजान हैं !!!!

दुनियाभर में लॉक डाउन है। हजारों लोग काल का ग्रास बन चुके हैं। अनेकों संक्रमित हैं , ईलाज़ चल रहा है। आवागमन बंद है। व्यापार ठप्प है। आलम अस्त-व्यस्त है। काम -धंधा नहीं है। लाखों लोग जो रोज गड्डा खोदते हैं और पानी पीते हैं , परेशान हैं। आय के साधन घट गए हैं। सरकारों की हालत पस्त है। अर्थव्यवस्था मंदी की चपेट में है।

कैसे एक छोटा सा वायरस [विषाणु ] इंसान को घुटनों पर ला देता है, ये "कोरोना " नाम के छोटे से जीव ने बता दिया। इंसान नाहक ही अपनी शक्तियों पर इतराता रहता है। बहुत कुछ बना लिया इंसान ने इंसानी अस्तित्व को समाप्त करने के लिए। लेकिन प्रकृति से लड़ना आसान नहीं है। कल HIV, Dengue, Swine-Flu, Chikangunia  था तो आज Corona  और कल न जाने क्या............................... क्या वास्तव में इस वायरस से  Covid -19 बीमारी फ़ैल रही है या ये मौसम में बदलाव का परिणाम है ??? अमेरिका और चीन एक-दुसरे पर इस वायरस को फ़ैलाने का आरोप लगा रहे हैं। डर का माहौल ऐसा हो गया है की जरा सा जुकाम भी हो जाए तो लगता है की कहीं इसकी चपेट में तो नहीं आ गए !!

दरअसल , प्रकृति ने प्रत्येक जीव की संरचना कुछ इस तरह की है की उसमे अन्य जीव से लड़ने की अंदरूनी ताक़त और कमजोरी दोनों है। Immunity [रोग प्रतिरोधक शक्ति ] इसी का नाम है।


Covid -19 का असर 
क्यों समय -समय पर ऐसी बीमारिआं हो जाती हैं , जिनका इलाज़ तुरंत नहीं मिलता ? इंसान ने अपने आप को जीवित रखने का बहुत प्रयास किया है। लेकिन जिसने इंसान को बनाया है, उसने उसे मिटाने के अनेकों हथियार बना रखें हैं और रोज नए निर्मित भी हो रहे हैं। जब घर में गेहूं , दाल , चावल , मसाले आदि में कीड़े पड़ जाते हैं तो उन्हें समाप्त करने के लिए "पारे " की गोली , माचिस की "तीली " , "अरंडी " का तेल आदि डाल देते हैं। परन्तु क्या तब भी इन छोटे -छोटे कीड़ों को पैदा होने से रोका जा सकता है ? शायद .......नहीं।


लॉकडाउन ; Lockdown 

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कोरोना वायरस 
घरों की दीवारों में, किवाड़ों में, कॉपी -किताबों में  "दीमक " कैसे लग जाती है , पता ही नहीं चलता। कीड़े , दीमक आदि विषाणुओं को यदि नहीं मारा जाये  तो ये कुछ ही दिनों में सामान चट कर जाते हैं। इसका मतलब ये हुआ की प्रकृति ने प्रत्येक जीव को खाने के लिए कुछ न कुछ अवश्य दिया है।  परन्तु इंसान ने  , उसे मारने  के लिए "कीटनाशक " बनाने के अलावा कुछ नहीं दिया। बस मार डालो उसे जिससे तुम्हे खतरा है। काश ........ इंसान ने ये जानने का प्रयास किया होता की ये छोटे-छोटे जीव पैदा  क्यों होते हैं। और किस तरह से हम उनकी और वो हमारी मदद कर सकते हैं। लेकिन इंसान का व्यवहार उलट ही है, हर तरह के कीड़े को मारने के अनेकों कीटनाशक उपलब्ध हैं। लेकिन फिर भी उनके पैदा होने में कोई कमी नहीं है। मेडिकल -साइंस का जीवन के बारे में जो Hypothesis [परिकल्पना ] है, उसके अनुसार "रासायनिक -पदार्थों " के जटिल संयोजन से जीव की उत्पत्ति हुई होगी । लेकिन क्यों होती है ? इसका उत्तर नहीं मिलता।

कुछ जीवों का जीवन-काल क्षणिक, तो  कुछ का दीर्घ  है। कोई आकार में छोटा तो कोई बड़ा। कोई बहुत छोटा जिसे खुली आँखों से नहीं देखा जा सकता , लेकिन अत्यधिक शक्तिशाली जैसे की "कोरोना "!! जीव-विज्ञानं [Biology ] को पढ़ने से ये तो पता चलता है की विभिन्न पदार्थों के संयोजन से जीव की उत्पत्ति होती है।  लेकिन जीवों की उत्पत्ति का उदेश्य क्या है ? प्रकृति विभिन्न पदार्थों के साथ-साथ जीवों के  विभिन्न शरीर का भी निर्माण करती है , क्यूंकि बिना शरीर के जीव का अस्तित्व नहीं है। जैसा की विज्ञान बताता है की मनुष्य के शरीर में लाखों बेक्टेरिआ होते हैं जो मनुष्य को मजबूती प्रदान करते हैं। लेकिन दूसरी ओर वातावरण में लाखों विषाणु भी हैं और ये समय -समय पर सक्रिय होते रहते हैं , शायद प्रकृति का संतुलन बनाने के लिए।

प्रकृति के संतुलन से मानव की छेड़छाड़ ही अनेकों बीमारीओं को जन्म देता है। गंदगी, सड़ा -पानी , विषैला -वातावरण, असंयमित खुदाई , परमाणु -विस्फोट , जंगल की आग , पशु-बलि / कत्ल आदि ये सब विषाणु के पैदा होने में सहायक है और बीमारी को जन्म देते हैं। अतः मानव को प्रकृति का आदर करना चाहिए। 

हिन्दू धर्म में प्रकृति की प्रत्येक शक्ति यथा : पानी ,वायु , आकाश , भूमि , अग्नि , पेड़-पौधे आदि की पूजा शायद उसके सम्मान के लिए ही है। इसलिए, प्रकृति को समझना और उससे जुड़ना और उसकी देखभाल करना बेहद जरूरी है। निर्माण के बाद विध्वंस और पुनर्निर्माण प्रकृति का स्वभाव है। प्रकृति की अदृश्य शक्तियां जीवनदायी और प्राणघातक दोनों हैं। 

प्रकृति ने ही हमें बीमारी भी दी है और दवा भी [जड़ी-बूटीआं ] और इंसान को दिमाग़ भी दिया है की कैसे उनका उपयोग करके स्वस्थ बने ।

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लॉकडाउन ने विलासिता की चीजों से तो मुक्ति दिलाई है। और ये भी बताया है की नियंत्रण से भोगवाद को कम किया जा सकता है। 
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