छुपे खंज़र ! Hidden daggers!
छुपे खंज़र |
महाराज शिवाजी को अफ़ज़ल खां ने बातचीत के लिए बुलाया तो गले मिलने के बहाने धोखे से शिवाजी पर वार करने का प्रयास किया गया। शिवाजी इस हमले के लिए तैयार थे, उन्होंने अपने "छुपे-खंजर" से वार किया और अफ़ज़ल खां की होशियारी को धता बता कर वापस अपने राज्य लौट आये। शिवाजी द्वारा इस्तेमाल "छुपा-खंज़र" आत्मरक्षा के लिया था। लेकिन कुछ ऐसे छुपे-खंज़र भी होते हैं जो होते तो हमारे हैं लेकिन ऐन वक़्त पर हम पर ही घोंप दिए जाते हैं!!
ये छुपे खंजर हमें जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में मिल जाएंगे। ऑफिस, पड़ोस , परिवार , मित्र , स्कूल , कॉलेज , और राजनीती में तो ये बहुतायत में उपलब्ध हैं। बहुत तकलीफ होती है जिसे हम अपना समझते हैं वोही व्यक्ति ऐन वक़्त पर पाला बदल लेता है , धोखा दे जाता है। ऐसे व्यक्ति किसी विशेष उद्देश्य से सम्बन्ध स्थापित करते हैं और उदेश्य पूरा होते ही ऐसे बदल जाते हैं जैसे गिरगिट रंग बदलता है !! बहुदा सुनते हैं की "पार्टनर ने बिजनेस में धोखा दे दिया"। या "परिवार के किसी सदस्य ने धोखे से संपत्ति हड़प ली"।
बात उस समय की है जब हम एक मल्टीस्टोरी बिल्डिंग में एक फ्लैट खरीदकर रह रहे थे। चूँकि अभी सारे फ्लैट्स बिके नहीं थे , इसलिए बिल्डिंग का मेंटेनन्स बिल्डर ही देख रहा था। परन्तु उसकी सेवाओं से रहवासी खुश नहीं थे। कभी लिफ्ट ख़राब होती तो ठीक कराने में सात -आठ दिन आम बात थी। कार पार्किंग की कोई व्यवस्था उसने नहीं की थी यानि पार्किंग अलॉट ही नहीं की थी। नए फ्लैट्स में बारिश के कारण सीलन आ रही थी। टेरेस पर बने फ्लैट्स में उसने गर्ल्स हॉस्टल शुरू कर दिया था। गार्ड्स रहवासी का कहना ही नहीं मानते थे। कॉमन टॉयलेट्स पर ताले लगे हुए थे। जिस रहवासी को परेशानी होती तो वह बिल्डर से बात करता , परन्तु वह कोई न कोई बहाना बना कर टाल देता। इसी दौरान उसने मेंटेनेंस बढ़ाने की बात कही। तो सभी रहवासी विरोध करने लगे , परन्तु उस पर कोई असर नहीं हुआ।
अतः सभी रहवासियों ने एक बैठक करके निश्चित किया कि सोसाइटी बनाई जावे और मेंटेनेंस का काम सोसाइटी मेंबर्स देखें। सभी रहवासी जोश में थे अतः मेंबर्स चुन लिए गए , पद बाँट दिए गए। एक लिखित आवेदन बिल्डर को दिया गया जिसमे सोसाइटी हैंडओवर करने का अनुरोध था। बिल्डर्स एक राजनीतिक -पार्टी से सम्बद्ध था और मार्किट में उसकी अच्छी -खासी साख थी। बिल्डर को सोसाइटी हैंड-ओवर करने की बात चुभी, अतः उसने पहला बहाना ये बनाया की आवेदन पर हस्ताक्षर करके दें। अब लगभग दस मेंबर्स में से कोई भी हस्ताक्षर करके आगे आने के लिए तैयार नहीं हुआ , शायद वो बिल्डर से दबे हुए थे या डरते थे। ऐसे में सचिव और कोषाध्यक्ष आगे आये और हस्ताक्षर करके आवेदन दे दिया गया।
सोसाइटी |
इधर गर्ल्स -हॉस्टल के कारण बिल्डिंग -परिसर में शोर -शराबा बढ़ गया , उधर चूँकि बिल्डर एक राजनितिक पार्टी से सम्बद्ध था तो आये दिन पार्टी के कार्यकर्ताओं के आने -जाने से रहवासी और परेशान होने लगे। परन्तु किसी में भी हिम्मत नहीं थी कि वो बिल्डर से बात कर सके। ऐसे में सचिव ने नगरपालिका जा कर पूछ -ताछ की, " कि क्या रहवासी परिसर में बिल्डर हॉस्टल चला सकता है"? जवाब मिला "नहीं ". सभी रहवासी मिलकर उसकी शिकायत नगरपालिका व् कलेक्टर के यहाँ करें तो बिल्डर के विरुद्ध कानूनी कार्यवाही हो सकती है।
परन्तु , दुर्भाग्य से नगरपालिका का वो कर्मचारी बिल्डर का पहचान वाला था। उसने बिल्डर के कान भर दिए। अगले दिन बिल्डर सचिव के घर पहुँच गया और धमकी दी की, "नेता बनने की कोशिश की तो बुरा परिणाम होगा"। ये बात सचिव ने सोसाइटी के अन्य सदस्यों को बताई तो कोई भी सामने नहीं आया। उलटे सचिव से ये कहा गया की, "हमने तो आप से पहले की कहा था की बिल्डर से पन्गा मत लेना"। कुछ सदस्य चुपचाप खिसक लिए।
बाद में पता चला की कुछ सदस्यों पर फ्लैट की कुछ रकम बाकी थी, तो कुछ के बिल्डर के साथ व्यापारिक, सामाजिक सम्बन्ध थे , अतः वो बिल्डर के बुरे नहीं बनना चाहते थे। सचिव और कोषाध्यक्ष पर ही सोसाइटी बनाने का आरोप भी मढ़ दिया गया। बाद में कुछ सदस्य बिल्डर के दवाब में सोसाइटी से अगल हो गए और सोसाइटी मरणासन्न स्थिति में आ गयी। कुछ ने तो सोसाइटी वापस बिल्डर को देने का निश्चय किया और उससे अनुरोध भी किया, परन्तु अब बिल्डर ने मना कर दिया। कुल मिलकर सोसाइटी बनाने का जो उद्देश्य था वो निजी हितों व् अकारण डर के कारण लगभग विफल हो गया। सचिव और कोषाध्यक्ष अकेले रह गए।
छुपे खंज़र ! Hidden daggers!
हमारे जीवन में अनेक ऐसे क्षण आते हैं जब हमें पता चलता है कि, जिसे हम अपना समझते थे वो तो आस्तीन का सांप निकला !! पुराने ज़माने में भी देखते हैं तो इतिहास से पता चलता हैं की एक राजा ने दूसरे राजा को हराने के लिए पहले मित्रता की, और बाद में उसे धोखा दे दिया। अंग्रेजों के शासन -काल में तो आम बात थी। अतः ये समझा जा सकता है कि मानव -प्रवृति आदि -काल से ही निहित स्वार्थ से लिप्त रही है। समाज के इस ताने -बाने में मनुष्य अकेले तो नहीं रह सकता। लेकिन, 'कौन अपना है और कौन पराया" इसकी पहचान आसान नहीं होती। वफ़ा की अभिलाषा उनसे ही की जा सकती है , जिन्होंने वफ़ा सीखी है !
१] कभी भोले -भाले बन के सम्बन्ध स्थापित न करें।
२] अतिशीघ्र सम्बन्ध न बनाये जाएँ। पूरी जांच -परख जरूर करें।
३] सामान्य स्थिति में किसी से सहायता न मांगे। लोग दावे तो बहुत करते हैं की हमारे लायक कोई काम हो तो जरूर बताना , लेकिन ऐन वक़्त पर इंकार कर देते हैं / बहाने बना देते हैं।
४] यदि कोई व्यक्ति किसी भी वजह से आपकी हाँ में हाँ मिलाये तो समझें की वो एक कमजोर व्यक्ति है और आने वाले समय में उसको पाला बदलने में समय नहीं लगेगा।
५] लोगों के आत्मविश्वास की परीक्षा लें। उनसे वो काम करने के लिए कहें जिससे महसूस हो वो किस हद तक आपके साथ संबंधों के परवाह करते हैं। कमजोर व्यक्ति अक्सर थोड़े से दवाब में बदल जाते हैं। ऐसे लोगों से दूर रहें।
६] जब तक निवेदन न मिले किसी के मामले में हस्तक्षेप न करें।
७] लीडरशिप क्वालिटी रखें। ईमानदार बने। प्रारम्भ में कुछ परेशानियां आएँगी , परन्तु जब लोगों को आपके काम की लगन दिखेगी , तब ईमानदार लोग अपने आप जुड़ जाएंगे।
८] कॉमन -अजेंडे में भी कुछ लोग स्वार्थ के कारण धोखे दे जाते हैं। उन्हें बिकने में ज्यादा समय नहीं लगता !
९] भावनाओं में न बहें। हर व्यक्ति को अपने जैसा न समझें। अति विनम्र , चाटुकार लोग धोखेबाज निकलते हैं।
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