धोखे कहाँ नहीं हैं ?? - ज़िन्दगी के अनुभव पर Blog : Blog on Life experience

गुरुवार, 29 अगस्त 2019

धोखे कहाँ नहीं हैं ??

धोखे कहाँ नहीं हैं ??

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 ज़िन्दगी के अनुभव 
समझते थे जिनको हम अपना हमराज़, समय आने पर वो निकले दग़ाबाज ।

धोखे कहाँ नहीं हैं !! प्यार में , व्यापार में , रिश्तों में, दोस्ती में , किताबों में , राजनीति में , व्यवहार में, इंसानों में सब जगह धोखे मौजूद हैं। जानवर फिर भी आदमी से ज्यादा वफादार है।
यक्ष प्रश्न ये है कि धोखे / दग़ा  को  पहचाने कैसे ? बचें कैसे ?

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विश्वासघात बेहद महँगा धोखा है।  इसीलिए विश्वास करने में डर लगता है। पहली कोशिश रहती है कि आजमाया जाए, फिर व्यवहार किया जाए। लेकिन फिर भी धोखे मिलते हैं। क्या करें ? क्या सबको शक की नज़र से देखें ? ऐसा तो हो नहीं सकता कि किसी से व्यवहार किया ही न जाए।


"विश्वासघाती हमेशा इसी फ़िराक में रहता है कि पहले विश्वास जमाओ, एहसान लादो  और फिर मौका पाते ही घात कर दो।"

कुछ अनुभव रहें हैं विश्वासघात / धोखे के। साझा इसलिए किए हैं, शायद सजगता कुछ काम आ जाएँ।


ज़िन्दगी के अनुभव पर Blog ; धोखा 

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"धोखा "-एक अनुभव 
[१] पहला वाक्या :-जब मैं सिरोही [राजस्थान ] में सन 1996 में पोस्टेड था। तब एक परिवार से हमारे सम्बन्ध बन गए थे। घर आना -जाना , खाना -पीना , घंटों बैठकर बातें करना शुरू हो चुका  था। परिवार पढ़ा -लिखा व् संभ्रांत प्रतीत होता था। चूँकि मैं बैंक में था, तो उनके बैंकिंग काम घर से हो जाते थे। तीन -चार महीने में मित्रता और गहरी हो गई।

एक दिन उस परिवार के मुखिया जिनका नाम तिलक था, मुझसे मिले और 5000 रुपए की सहायता करने के लिए बोले। और कहा कि चार दिन में वापस कर दूँगा। उन पर विश्वास करके मैंने रूपए दे दिए। अपना विश्वास जमाने के लिए उस बन्दे ने तीसरे ही दिन सारे रुपए लौटा दिए। मुझे अच्छा लगा और दिल में उनके लिए जगह बन गई। ऐसे ही उन्होंने  दो -तीन बार रुपए मांगे और समय पर वापस कर दिए। इसके अलावा मेरे बच्चे के जन्मदिन पर अच्छा सा उपहार भी दिया। कुल मिलाकर वो बंदा मुझपर अपना विश्वास जमाने में कामयाब हो गया।

कुछ दिनों बाद उसने मुझसे 20,000 रुपए की माँग करी और बोला सप्ताह भर में लौटा दूँगा। मैंने कहा, "मेरे पास तो रकम नहीं है , आप कहें तो उधार दिलवा दूँ "। उसने कहा, " आप ले आओ, बदले में, मैं आपको ही वापस कर दूंगा "। मैंने वैसा ही किया और 15 दिन के लिए रुपए लाकर दे दिए। उस पर विश्वास करते हुए कोई लिखा-पढ़ी भी नहीं करी [मेरी बेवकूफी ]।  20 दिन गुजर गए , उसने रुपए वापस नहीं किये। मैंने जिससे उधार लिया था, उसके तकादे आने शुरू हो गए। मैं तिलक से मिला और रुपए वापस की बात करी, तो उसके बहाने शुरू हो गए। ""अरे भाईसाहब अभी धंधा मंदा चल रहा है , मेरा एक कॉन्ट्रैक्ट का पैसा आने वाला है""। "आते ही दे दूंगा"। वगेरा... वगेरा.... इस तरह दो महीने गुजर गए। मुझे टेंशन होने लगी। घर में बताया। मेरी माँ उनके घर गईं और उन्हें लताड़ा। तब भी उस बन्दे ने 4000 रुपए ही दिए और कहा, "बाकी रुपए सात दिन में दे दूंगा "।

इस तरह दो महीने और गुजर गए।  इस बीच मैंने आधे पैसे उधारी के चुका दिए, ये सोचकर की जैसे ही वो रुपए लौटाएगा बाकी के भी दे आऊंगा। लेकिन उस बन्दे ने तो बेशर्मी की चादर ही ओढ़ ली थी। मेरा उससे मिलना रोज का क्रम था और उसका...... रोज कोई न कोई बहाना बनाना। अब घर आना -जाना भी कम हो गया। नज़रें कटने लगीं थीं। जब मन में कपट हो तो शैली भी बदल जाती है। उसे कोई परवाह नहीं थी, क्योंकि उसका उल्लू  सीधा हो चुका  था। मेरी माँ एक बार फिर उसके घर गई , इस बार उसे उसकी पत्नि के सामने शर्मिंदा किया। तो उसने फिर 4000 रुपए और दे दिए। और बाकी के लिए फिर 15 दिन बोल दिया। अगली बार 1000 रुपए ही दिए। अभी भी 11,000 रुपए शेष थे। और 10 महीने का समय गुजर गया था। चूँकि मुझे अपनी  इज्जत की चिंता थी अतः मैंने उसकी उधारी तो चुका दी।

लेकिन उस बन्दे ने फिर भी रुपए नहीं चुकाए। इस बीच मेरा ट्रांसफर बाड़मेर हो गया। जाने से पहले , मैं उससे मिला और बोला कि, " भाई-मेरे, अब तो रुपए दे दे। मेरे छोटे -छोटे बच्चे हैं। वो उधारी-वाला रोज आकर मेरे घर खड़ा हो जाता है। मेरा क्या कसूर है। तुम पर विश्वास किया, उसका ये सिला दे रहे हो "। वो बोला, "अरे भाईसाहब मैं आपकी परेशानी समझ रहा हूँ पर आप मेरी नहीं समझ रहे हैं। विश्वास रखो आपके पैसे कहीं नहीं जाएंगे। आप कहीं भी चले जाओ। मैं वहीँ आकर आपको रुपए दूँगा। पक्का....... हाँ पक्का "। और मैं नई जगह ज्वाइन करने चला गया। आज तेईस वर्ष हो गए बाकी के रुपए अभी तक नहीं मिले।

तब से मैंने सबक सीखा कि जान -पहचान , दोस्ती में; लेन -देन कभी नहीं करूंगा। और अगर ऐसी नौबत आयी भी, तो कोई न कोई बहाना बनाकर मना कर दूँगा। ज्यादा से ज्यादा क्या होगा , सम्बन्ध खत्म होंगे न , होने दो और नए बन जायेंगे, लेकिन मेहनत की कमाई तो कहीं नहीं जायेगी , टेंशन तो नहीं होगी ।  

जब कोई आवश्कयता से अधिक मेहरबान होने लगे , शीघ्र  नज़दीक आने लगे , पैसों की मांग करने लगे, एहसान लादने लगे तब समझ लेना चाहिए कि"दाल में कुछ काला है"
प्यार में धोखा 


ये जो घड़ी डिटर्जेंट का विज्ञापन आता है न -"पहले इस्तेमाल करें , फिर विश्वास करें ".
मैं इंसानी -फितरत के लिए कहूंगा - "पहले इस्तेमाल करें , फिर भी अँधा विश्वास न करें ".




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ज़िन्दगी के अनुभव पर Blog धोखा 

[२] दूसरा वाकया :- मेरा दोस्त बैंक में था। देश में सन 1991 से उदारीकरण के बाद बैंकों को  कॉन्ट्रैक्ट-बेसिस पर युवाओ को रोजगार देने का अधिकार मिल गया था। अतः दो युवकों  को उसकी बैंक की  शाखा में भी नियुक्ति मिली। पहले तो उन युवकों ने लगभग 6 महीने काम सीखा, तब उनको बैंक ने ग्राहकों से बैंकिंग लेन -देन करने की परमिशन दे दी। दोनों युवकों ने कड़ी मेहनत करके मैनेजर व् स्टाफ का दिल जीत लिया। वे व्यव्हार कुशल भी थे। अब चूँकि बैंकों में कंप्यूटर पर ही काम होता था। अतः हर स्टाफ का पासवर्ड भी अलग होता था। ताकि ये पता लग सके की कौन सा ट्रांजेक्शन किसने किया है।

लड़के मेहनती थे व् कंप्यूटर के जानकार थे। अतः स्टाफ से ज्यादा वो तेजी से काम करते थे। उनके आने से सीनियर-स्टाफ कामचोर होने लगा। अतः सीनियर जो भी काम बताते, वो भी बिना किसी दिक्कत के तुरंत कर देते थे। धीरे -धीरे लड़कों का विश्वास स्टाफ पर जमने  लगा। अब वो अन्य स्टाफ का पासवर्ड लेकर भी काम को निपटाने लगे। "हरामखोर" हमेशा चाहता है कि उसका काम कोई निपटा दे  !! शाम को जो भी रिपोर्ट निकलती उसको चेक करने की जिम्मेदारी दो सीनियर ऑफिसर्स की थी।

कुछ समय पश्चात चेकिंग का काम भी दोनों युवाओं को दे दिया गया , परन्तु रिपोर्ट पर हस्ताक्षर सीनियर अफसर ही करता था। जब रिपोर्ट आती तो लड़कों से पूछा जाता; "हाँ भाई सब चेक कर लिया" , "सब ठीक है न" , "साइन कर दूँ "। कभी -कभी सरसरी नज़र से रिपोर्ट देख भी ली जाती। अब तक उन लड़कों को शाखा में होने वाली कार्यप्रणाली की पूरी जानकारी हो चुकी थी। धीरे -धीरे सीनियर स्टाफ को ब्रांच का बिज़नेस बढ़ाने के लिए बाहर भेजा जाने लगा। अतः ब्रांच में कार्यनिष्पादन दोनों युवा ही निपटाने लगे। जब किसी ट्रांज़ैक्शन को पूरा करना होता तो किसी भी अधिकारी का, जो ड्यूटी पर तो है परन्तु शाखा में नहीं है , उसका पासवर्ड पूछ कर उस ट्रांज़ैक्शन को निपटा दिया जाता था।

साल भर में ही लड़के ब्रांच-बैंकिंग में मास्टर हो गए। स्टाफ व् ग्राहक से रिलेशन बनाना उनके लिए बाएं हाथ का खेल था। उन पर विश्वास इतना बढ़ गया कि ग्राहक आकर उन्हें रुपए देकर चले जाते। ग्राहक को क्या पता कि कौन स्टाफ स्थाई है और कौन अस्थाई। रुपए ग्राहक के बचत / चालू / फिक्स्ड डिपाजिट में जमा हो जाते। एक -दो दिन में ग्राहक आता और पासबुक में एंट्री कराकर या अपनी F.D.[Fixed Deposit] लेकर चला जाता। बैंकिंग होती रही , दिन कटते रहे। लड़के चतुर होते गए और सीनियर लापरवाह !!

कुछ दिनों बाद, एक ग्राहक बैंक में अपनी फिक्स्ड डिपाजिट की रिसीप्ट लेने आया । ढूंढा गया , नहीं मिली। सिस्टम में देखा गया , रिसीप्ट जारी तो हुई है। तो फिर कहाँ गयी !! मालूम पड़ा की उस FD पर लोन चल रहा है और वो शाखा में ही रखी हुई है। ग्राहक ने तुरंत किसी भी लोन लेने से मना करने की बात कही। FD के पीछे व् लोन डाक्यूमेंट्स पर उनके हस्ताक्षर दिखाए गए। परन्तु ग्राहक ने अपने हस्ताक्षर न होने का दावा किया। रुपए 50,000 की FD पर 30,000 का लोन था।

मामला बैंक के क्षेत्रीय -कार्यालय तक पहुँच गया। जांच शुरू की गयी। जांच में एक लड़के ने अपना हाथ होना स्वीकार किया। अब बैंक को ये मालूम करना था कि दूसरा व्यक्ति कौन है जिसने ये जाल -साजी  की। क्योंकि नियम के  हिसाब से कोई भी ट्रांजेक्शन  दो स्टाफ के पासवर्ड के बिना नहीं हो सकता। मालूम पड़ा एक सीनियर अधिकारी का पासवर्ड इस्तेमाल हुआ।

इस तरह की जाल -साजी के 10 केस निकले, जिसमे दोनों लड़कों ने दो अधिकारिओं के पासवर्ड से तीन लाख के लोन FD पर उठा लिए। अब बैंक के सामने प्रश्न ये था कि लड़कों से रुपए कैसे रिकवर किये जाएँ। तथा उन्होंने उन रुपयों का क्या किया। उनकी क्लास लगी। पुलिस केस से डराने का प्रयास किया गया। उनके माता -पिता को बुलाया गया। परन्तु रुपए नहीं निकले। बैंक ने पुलिस थाने में शिकायत कर दी। दोनों लड़कों को पुलिस ले गयी , तब बड़ी पूछताछ के बाद उन्हों बताया की कुछ पैसा तो उन्हों शेयर -बाजार में लगा दिया , कुछ मित्रों को दे दिए , कुछ पैसे से बाइक खरीद ली और कुछ मौज -मस्ती में उड़ा दिए। उधर , दोनों सीनियर ऑफिसर्स की भी रोज थाने में इज्जत उतारी जाने लगी।
एक बार कोई केस पुलिस के हाथ में चला जाए तो आसानी से नहीं सुलझता। थाने और कोर्ट के चक्कर लगाने में बहुत चक्कर आने लगते हैं। बड़ी मुश्किल से कुछ रुपए रिकवर हुए। ग्राहकों को बैंक ने अपने फण्ड से पूरा भुगतान कर दिया। दोनों युवाओं को जेल हो गई और नौकरी से हाथ धोना पड़ा।

ज़िन्दगी के अनुभव -धोखा 

जिन सीनियर ऑफिसर्स का पासवर्ड इस्तेमाल हुआ उन्हें ससपेंड कर दिया गया। उनका PF व Gratuity रोक दिए गए। उनके "केस" कोर्ट में चल रहे हैं। समझा जा सकता है कि उनकी ज़िन्दगी कैसे गुजर रही होगी। काश............ वो अँधा -विश्वास न करते , लापरवाह न होते , अनुशासित रहते .............."लापरवाही " विश्वासघात की जन्मदात्री है।  "अतिविश्वास" खतरनाक धोखा  है। 
                                         
रूमानी [ Romantic ] और सम्बन्धित भागीदारों के बीच उल्लेखनीय हद तक धोखा  होता है।
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